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जैन-विभूतियाँ
33 कर स्वर्गारोहण किया। अल्पायु में ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण कर शीतल प्रसादजी समस्त जैन समाज में "वर्तमान के सामंतभद्र' कहलाने लगे थे। समाज के सर्वतोमुखी विकास के लिए किये गये उनके प्रयत्न सदा प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।
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