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________________ जैन-विभूतियाँ 8. ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद (1879-1942) 30 जन्म पिताश्री माताश्री दीक्षा दिवंगति : लखनऊ, 1879 लाला मक्खनलाल : : नारायणी देवी : सोलापुर, 1911 : लखनऊ, 1942 सन् 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम यद्यपि निष्फल चला गया परन्तु राष्ट्रप्रेम एवं आजादी के लिए कशमकश जारी रही। सन् 1885 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना हुई। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष तीव्रतर होता गया । विदेशी हकूमत जोरों से देश की दौलत लूटने में मशगूल थी। देश की सामाजिक स्थिति बदतर थी । बाल विवाह, ' वृद्ध विवाह, विधवा विवाह निषेध, दहेज-प्रथा, मृत्युभोज जैसी कुप्रथाओं से क्षुब्ध होते हुए भी जन-मानस उन्हें सहता चल रहा था । निरक्षरता एवं अंधविश्वास के मारे सारे विकास अवरुद्ध थे । आर्थिक व धार्मिक शोषण से देशवासी त्रस्त थे। ऐसे समय प्रकाश की एक किरण ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद के रूप में देश के अंधकाराच्छन्न आकाश पर उभरी। संयुक्त प्रांत की राजधानी लखनऊ में लाला मक्खनलालजी के घर उनकी धर्मपत्नि नारायणी देवी की कुक्षि से सन् 1879 में एक बालक ने जन्म लिया। बचपन में उन्हें पितामह मंगलसेन से स्वाध्याय, चिंतन, अभक्ष्य का त्याग आदि संस्कार मिले। अठारह वर्ष की वय में बालक ने मेट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। सरकारी नौकरी भी तत्काल लग गई। उनके शैक्षणिक स्तर एवं सुधार के लिए तड़प का पता तात्कालीन " जैन गजट" के मई, 1896 के अंक में छपे उनके एक लेख से लगता है, जिसमें उन्होंने लिखा
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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