SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-विभूतियाँ 27 गणित के ज्ञान एवं अपने अध्यवसाय से वे थोड़े समय में ही कपड़े व्यवसाय में निष्णात हो गए। गाँव में उनके अनुभव की सौरभ फैलने लगी। तभी अचानक जब वे मात्र 13 वर्ष के थे उनके अभिभावक मामा की अकाल मृत्यु हो गई। बालक के हृदय पर वज्राघात हुआ। जिनके लिए जीवन भर मार्गदर्शक-रक्षक रूप की आशा संजोए बैठे थे, उनके चले जाने से बालक का कोमल मन तड़प उठा। विधवा मामी एवं उसके पाँच वर्षीय बालक की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर आ पड़ी। ऐसे समय किसी पूर्व भव में वपन हुआ वैराग्य बीज अंकुरित होने लगा। मानस जगत की असारता से उद्वेलित हो उठा। आत्मीयजनों को खबर लगी तो जवाहर पर निगरानी रखी जाने लगी। ग्राम में आए संत-साध्वियों के समागम में वे न जा सकें, ऐसे प्रतिबंध लगा दिए गये, साधु जीवन के ढकोसलों एवं निन्दा से उनके कान भरने की कोशिशें होने लगीं। पर होनहार को कौन टाल सकता है। विरक्त जवाहर गृहस्थी के जाल में कमलवत् अनासक्त रहने लगे। तभी पास ही के लींबड़ी ग्राम में स्थानकवासी मुनि घासीरामजी का पदार्पण हुआ। जवाहर वहाँ पहुँच गये। दीक्षा के लिए आग्रह करने लगे पर मुनिजी ने आत्मीयजनों की बिना अनुमति दीक्षा देना स्वीकार नहीं किया। जवाहर का वैरागी मन जब किसी तरह न माना तो आत्मीयजनों को अनुमति देनी पड़ी। सन् 1891 में मुनि घासलीलालजी के सान्निध्य में लींबड़ी ग्राम में जवाहरलाल जी की दीक्षा सम्पन्न हुई। जवाहरलालजी की जन्मजात प्रतिभा खिलने लगी। जैनागमों के अध्ययन में उनकी तीव्र स्मरण शक्ति, तीक्ष्ण बुद्धि, गुण ग्राहकता एवं एकनिष्ठा के योग से सिद्धि प्राप्त हुई। उनकी आत्यंतिक विनयशीलता से देवी सरस्वती प्रसन्न हुई। उनकी ख्याति फैलने लगी। सन् 1897 में युवाचार्य श्री चोथमलजी महाराज के विशाल संघ का समागम हुआ। सन् 1899 में चोथमलजी महाराज का स्वास्थ्य गड़बड़ाया तो उन्होंने संघ के निर्देश की जिम्मेवारी चार मुनियों के संकाय के सुपुर्द कर दी जिसमें एक 24
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy