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जैन-विभूतियाँ 22. डॉ. जतनराज कुम्भट .
बिशन सुगन कुम्भट चेरीटेबल ट्रस्ट, जोधपुर के मेनेजिंग ट्रस्टी डॉ. जतनराज कुम्भट का जन्म सन् 1929 में हुआ। सम्पूर्ण शिक्षा जोधपुर में ही हुई। राजकीय महाविद्यालय में व्याख्याता पद पर रहते हुए आपने "अमरीकी अर्थ सहयोग का भारतीय अर्थ व्यवस्था पर प्रभाव'' विषय पर डाक्टरेट कर पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की। 1984 में प्राचार्य पद से अवकाश ग्रहण कर आप समाज एवं धर्म प्रभावना की प्रवृत्तियों से जुड़े हैं।
23. श्री रुगलाल सुराणा
लाडनूं के श्री शिवराज जी सुराणा के सुपुत्र श्री रुगलाल सुराणा उभरती युवा शक्ति के प्रतीक हैं। कलकत्ता के दो प्रमुख शिक्षण संस्थानों, यथा-श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी विद्यालय एवं बालिका विद्या भवन का संचालन आपकी देखरेख में हो रहा है। सम्प्रति आप राजस्थान परिषद्, कोलकता के संगठन मंत्री एवं लाडनूँ नागरिक परिषद् के उपाध्यक्ष हैं।
24. श्री अभयसिंह सुराणा
चूरू के श्री बच्छराजजी सुराणा के सुपुत्र श्री अभयसिंहजी अपने छात्र जीवन से अभूतपूर्व प्रतिभा के धनी हैं। आपने विकासोन्मुख चिंतन से समाज में अपना अप्रतिम स्थान बना लिया है। सुश्री रुनु गुहा नियोगी के बंगला उपन्यास 'गोरा आमिं काला आमि' का हिन्दी अनुवाद आपने प्रकाशित करवाया। आपके सम्पादकत्व में प्रकाशित
'चूरू पत्रिका' ने काफी लोकप्रियता हासिल की। आचार्य तुलसी रचित 'अग्नि परीक्षा का विवाद सुलझाने में आपकी सराहनीय भूमिका रही। आप अनेक सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के संचालक, ट्रस्टी एवं अध्यक्ष हैं।
25. डॉ. निर्मला प्रियदर्शी
श्री मांगीलाल भूतोडिया की सुपुत्री निर्मला प्रियदर्शी को ओसवाल समाज में पहली महिला इंजीनियर (Electronics) होने का श्रेय प्राप्त है। संयोगवशात उनकी रुचि आल्टरनेटिव मेडीशन में हुई। उन्होंने कलकत्ता संस्थान से M.D. की उपाधि हासिल की। वे नाड़ी विशेषज्ञ हैं। सम्प्रति मुम्बई में एक्यूपंक्चर पद्धति में चिकित्सा करती हैं। उनकी चिकित्सा प्रक्रिया में योग, ध्यान, आसन एवं प्राणायाम का मिश्रण रोगी को एक नई ऊर्जा युक्त जीवनशैली 'प्रदान करता है।