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जैन-विभूतियाँ
427 कानूनी सलाहकार बना दिया। सन् 1978 में अपना पुश्तैनी रसायन उद्योग छोड़कर वे पूर्णत: कानूनी सलाहकार बन गए एवं सन् 1983 में उनहोंने इस हेतु "एल.पी. मनोत एण्ड कम्पनी' फर्म की स्थापना की। कालान्तर में अपकी सुपुत्रियाँ सुश्री मंजु, अंजु एवं सुपुत्र बजरंग ने लॉ परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर पेशेवर वकील बन गए एवं कलकत्ता हाईकोर्ट में कार्यरत हैं। लक्ष्मीपतजी शुरु से ओसवाल समाज की प्रतिनिधि धार्मिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं से संबंधित रहे। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता एवं
विद्यालय के बीच सैंतालीस वर्षों से चले आ रहे विवाद का सर्वमान्य हल निकाल देने का श्रेय भी आपको ही है। सन् 1976 में बंगाल सरकार के समक्ष धार्मिक माईनोरिटी संचालित शिक्षण संस्थाओं में सरकारी दखल का संवैधानिक प्रश्न उठाकर आपने देश के शिक्षण जगत की अभूतपूर्व सेवा की। कलकत्ता हाईकोर्ट के सन् 1981 में दिए ऐतिहासिक निर्णय (AIR 1982, Cal. 101) से धार्मिक माईनोरिटी संचालित शिक्षण संस्थानों के भूल भूजा अधिकारों का प्रथम बार खुलासा हुआ। अब तो अनेक अन्य राज्यों में इन अधिकारों को मान्यता दे दी गई है। श्री मनोत ने सन् 1976 में अपने कानूनी अनुभव का समाज हितार्थ उपयोग करते हुए शिक्षण संस्थाओं के संचालनार्थ 'विशेष नियम' बनाए, जिनका उपयोग अन्य धर्मों की शिक्षा संस्थाएँ भी कर रही हैं। वे अ.भा. मनोत महासभा के उपाध्यक्ष रहे हैं। शिवपुर लायन्स क्लब के प्रेसिडेंट/मंत्री रहकर आपने सन् 1997 का अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। वे जैन सभा, जैन श्वे. ते. महासभा, मारवाड़ी रीलीफ सोसाईटी, मित्र मन्दिर, चूरू नागरिक परिषद् आदि विभिन्न संस्थाओं के सदस्य हैं। आप "सेठ सोहनलाल दूगड़ चेरीटेबल ट्रस्ट" के ट्रस्टी हैं। आपकी माता चम्पादेवी मनोत धर्मपरायण महिला थी। तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने उन्हें "श्रद्धा की प्रतिमूर्ति' विरुद से सम्मानित किया।
16. स्व. सेठ बुधमलजी भूतोड़िया
लाडनूं के ही भूतोड़िया परिवार के सेठ श्री बुधमलजी भूतोड़िया (1906-1992) अपनी मिलन सारिता एवं सुलझे हुए विचारों के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने बहुत जल्द व्यवसाय से सन्यास ले लिया। धार्मिक क्रांति एवं सामाजिक सुधारों के लिए हुए आन्दोलनों का प्रमुख केन्द्र उनकी हवेली ही थी। वे सत्योन्मुखी साधना के पक्षधर थे। धार्मिक कठमुल्लापन एवं अंधविश्वासों की कारा से मुक्त हुए साधकों के लिए तो वह आश्रय स्थल थी। उनकी धर्मपत्नि श्रीमती मांग कुमारी इन
समस्त गतिविधियों की प्रधान संचालिका थी। वे बड़ी जीवट वाली महिला थी। सामाजिक कुरीतियों का बहिष्कार, पर्दा-प्रथा निवारण, राष्ट्रीय स्वतंत्रता, शिक्षा-प्रसार आदि उनकी आस्था के केन्द्र बिन्दु थे।