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जैन-विभूतियाँ सदस्य हैं। दिल्ली स्थित भगवान महावीर मेमोरियल समिति के चीफ पैट्रोन एवं अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास के ट्रस्टी हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के सर्वोच्च निकाय तेरापंथ विकास परिषद् के निवर्तमान संयोजक एवं वर्तमान में प्रबन्ध मण्डल के सदस्य हैं।
वे जन-कल्याणकारी कार्यों में मुख्यत: गोल्छा ऑर्गेनाइजेशन द्वारा स्थापित एवं संचालित चैरिटी ट्रस्ट, आँखों के अस्पताल एवं गोल्छा ज्ञान मन्दिर के अध्यक्ष की हैसियत से कार्यशील हैं। लॉयन्स एवं रोटरी जैसे क्लबों के अध्यक्ष एवं मल्टीपुल डोनर हैं। नवजीवन अपांग केन्द्र के वे चीफ पैट्रन एवं नियमित मेजर डोनर हैं।
उनकी साहित्यिक अभिरुचि उल्लेखनीय है। अन्य पुस्तकों के अलावा उन्होंने कर्मवीर (अपने पिताश्री) की विस्तृत जीवन गाथा नेपाली भाषा में लिखकर 500-500 पृष्ठों के दो खण्डों में स्वयं संपादित की एवं गोल्छा ज्ञान मन्दिर द्वारा प्रकाशित की। वे कविताएँ एवं गीत भी लिखते हैं।
14. स्व. सेठ सोहनलालजी बांठिया
ओसवाल जाति के सुप्रसिद्ध बांठिया गोत्र की उत्पत्ति रणथम्भौर के परमार क्षत्रियों (राजपूतों) से मानी जाती है। संवत् 1167 में आचार्य जिनवल्लभ सरि का धर्मोपदेश हृदयंगम कर उन्होंने जैन धर्म अंगीकार किया। इस गोत्र के भीनासर (बीकानेर) निवासी सेठ मौजीरामजी बांठिया ने सन् 1882 में कलकत्ता में अपना व्यवसाय स्थापित किया। उनके पुत्र पन्नालालजी ने फर्म 'मौजीराम पन्नालाल' को आयात कारोबार में बुलंदी पर उठाया। पन्नालालजी
के पुत्र हम्मीरमलजी हुए। सेठ हम्मीरमलजी के पुत्र सोहनलालजी बड़े उद्यमी थे। इस फर्म के 'सिटीजन' ब्रांड फोल्डिंग छाता एवं उसकी रिब्स/ट्यूब आदि का निर्यात होता है। सोहनलालजी के सुपुत्रों सुश्री जेठमलजी एवं सुरेन्द्रकुमारजी के अध्यवसाय से सिटीजन छाता देश भर में लोकप्रिय हो गया है। अब आस-पास के देशों में इसका निर्यात भी होने लगा है। इस फर्म की दिल्ली एवं मुम्बई में भी शाखाएँ हैं। जेठमलजी के सुपुत्र सुश्री सुरेशकुमार, सुनीलकुमार, सुरेन्द्रकुमार एवं सुरेन्द्रकुमार जी के सुपुत्र सुश्री महेन्द्र कुमार, नरेशकुमार एवं जीतेश कुमार फर्म के कारोबार में सहयोगी हैं। श्री सुनील कुमार मुम्बई में जवाहरात निर्यात के कारोबार में संलग्न हैं। यह परिवार धर्म प्रभावक एवं समाज हितकारी कार्यों में सदैव सहयोगी रहा है। सेठ सोहनलालजी की धर्मपत्नि श्रीमती रायकुँवरी देवी धर्म परायण महिला थी। श्री जेठमलजी की धर्मपत्नि श्रीमती माणकदेवी सेवाभावी महिला हैं । रिकी पद्धति से ऊर्जा सम्प्रेषण में उन्हें महारत हासिल है।
15. श्री लक्ष्मीपत मनोत
चुरू के सेठ श्री मानिकचन्द मनोत के सुपुत्र श्री लक्ष्मीपत का जन्म सन् 1946 में हुआ। आपकी शिक्षा अपूर्ण रही पर जिस संघर्षमय जीवन से वे गुजरे उसने उन्हें एक अनुभवी