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________________ जैन-विभूतियाँ 417 मन्दिर, माता पद्मावती मन्दिर तथा सेवा सदन भवन निर्माण तथा प्रतिष्ठा में आपका योगदान सर्वोपरि रहा है। दिल्ली में निर्मित अद्वितीय कलात्मक श्री विजयवल्लभ स्मारक का आप द्वारा शिलान्यास, भगवान वासुपुज्य जैन मन्दिर में मुनि सुव्रत स्वामी जिन बिम्ब प्रतिष्ठा तथा नर्सरी स्कूल का निर्माण स्मरणीय रहेंगे। भगवान श्री ऋषभदेव जी की निर्वाण स्थली अष्टापद की प्रतिकृति का शास्त्रोक्त रीति से आयोजित मन्दिर निर्माण के लिए भूमि पूजन श्री हस्तिनापुर में आपके ही कर-कमलों में हुआ था। लालाजी वल्लभ स्मारक निधि के आजीवन ट्रस्टी होने के अतिरिक्त श्री आत्मानन्द जैन सभा रूपनगर, दिल्ली, श्री आत्मवल्लभ जैन यात्री भवन पालीताणा आदिके प्रधान रह चुके थे। श्री आत्मानन्द जैन महासभा एवं श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल गुजरांवाला की कार्यकारिणी समिति के वे वर्षों तक सदस्य रहे थे। __ लालाजी दृढ़ संकल्पयुक्त महापुरुष थे। गुरु आत्माराम और गुरु वल्लभ के परम भक्त थे। उपाध्याय श्री सोहन विजय जी महाराज जब 1923 में जेहलम नगर पधारे तो आपने उनके धर्म उपदेश से प्रभावित होकर सूर्यास्त पश्चात् भोजन सदा के लिए त्याग दिया। जीवन में 'कम खाना, गम खाना और नम जाना" तो उन्होंने गुरुदेव विजयवल्लभ सरि जी महाराज से ही सीखा था। उन्हीं के क्रमिक पट्टालंकार आचार्य विजय समुद्र सूरीश्वर जी तथा आचार्य विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी की आप पर अपार कृपा रही है। विजयवल्लभ स्मारक प्रणेता कांगड़ा तीर्थोद्धारिका महत्तरा साध्वी श्री मृगावती जी की प्रेरणा से आपने 20 एकड़ जमीन में अवस्थित विजय वल्लभ स्मारक एवं सम्बन्धित संस्थाओं में लाखों रुपयों का योगदान दिया है। साथ ही अपने एक पुत्र श्री राजकुमार जैन को वल्लभ स्मारक के काम के लिए समर्पित भी कर दिया जिसने अपना व्यवसाय छोड़ दिया तथा तल्लीनता पूर्वक अपनी कार्यकुशलता से स्मारक के कार्य को विश्व स्तरीय संस्थान का रूप देकर गुरू आत्म तथा वल्लभ के नामों को और उज्ज्वल कर दिया है।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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