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________________ 416 जैन-विभूतियाँ फूल कौर) के साथ परिणय सूत्र में बंध गए। लालाजी एक कुशल व्यापारी थे। धीरे-धीरे वे जेहलम नगर के शीर्ष व्यापारी बन गए थे। गुजरानवाला में कपड़े का थोक व्यापार भी खूब किया। देश विभाजन के कारण घर, सम्पत्ति-व्यापार आदि से वंचित हो गए। परन्तु देव-गुरु तथा धर्मकृपा से आतताइयों से जान बचाकर परिवार सहित दिल्ली में आ बसे। साधनों की कमी से लाला जी कभी हताश नहीं हुए। पुरुषार्थ तथा परिश्रम करते-करते वे आगे बढ़ते गए। सदर बाजार दिल्ली में पुराने फर्म नाम नरपतराय खैरायती लाला जैन के अन्तर्गत उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री बीरचन्दजी ने सन् 1948 में पुन: व्यापार शुरु कर दिया और स्वयं आपने 1949 में दिल्ली शाहदरा उप नगर में एक रबड़ उद्योग स्थापित किया। आप एक कुशल उद्योगपति थे। रबड़ तथा खेलों के सामान के उत्पादन में आप अग्रणी रहे हैं। व्यापारिक एवं सामाजिक क्षेत्र में आपका व्यवहार प्रामाणिक था तथा अनेक स्वस्थ परम्पराएँ आपने स्थापित की हैं। उत्पाद की गुणवत्ता आपका परम लक्ष्य रहा है। आप "एनके इण्डिया रबड़ कम्पनी" तथा "कास्को इण्डिया लिमिटेड'' दिल्ली एवं गुड़गाँव के मालिक थे। निर्यात में आपके प्रतिष्ठानों ने अनेक राष्ट्रीय तथा निर्यात संवर्धन पुरुस्कार प्राप्त किये हैं। न्यूजिलैण्ड से लेकर अमरीका, जापान एवं युरोप आदि विकसित देशों में आपके उत्पादन गुणवत्ता तथा दाम के आधार पर सर्वत्र सफल रहे हैं एवं आपके प्रतिष्ठानों को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिली है। धर्म को आपने आचरण में उतार लिया था। आपने अपने जीवन काल में, अनेक मन्दिरों के भूमिपूजन, शिलान्यास एवं निर्माण तथा धर्मशालाओं हेतु विपुल योगदान दिया। दिल्ली रूपनगर का श्री शान्तिनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर आपकी ही प्रेरणा से बना था। पालीताणा की पंजाबी धर्मशाला के शिलान्यास एवं प्रबन्ध में आप भागीदार थे। सुन्दर नगर लुधियाना में निर्मित जैन मन्दिर तथा श्री बद्रीनाथ, ऋषिकेश, हरिद्वार, शाहदरा एवं फरीदाबाद आदि स्थानों पर अनेक जिन मन्दिरों के शिलान्यास में आपने विशेष भूमिका निभाई है। हस्तिनापुर के पावन श्री पारणा मन्दिर का शिलान्यास तथा प्रतिष्ठान का सम्पूर्ण लाभ आपने ही लिया था। गुड़गाँव के श्री शान्तिनाथ जैन
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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