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जैन - विभूतियाँ
108. श्री खैरायतीलाल जैन (1902-1996)
जन्म : जेहलम (पाकिस्तान), 1902
पिताश्री : लाला नरपतराय
माताश्री : राधा देवी
दिवंगति : 1996
दिल्ली निवासी लाला खैरायतीलाल जैन बीसवीं शताब्दी के दानवीर धर्मपरायण, कर्मनिष्ठ एवं सेवाभावी श्रावक हुए हैं। वे बारह व्रतधारी श्रावक थे। भगवान महावीर के सच्चे पुजारी तथा पंजाब केसरी जैनाचार्य श्री विजय वल्लभसूरि जी महाराज के परम अनुयायी थे । विनय, विवेक, समता, सहिष्णुता, परोपकार की भावना से ओत-प्रोत थे । राग, द्वेष, ईर्ष्या, अभिमान एवं वैर-विरोध से वे कोसों दूर रहे।
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लालाजी प्राणीमात्र के कल्याण की सदैव कामना करते थे । अपने जीवन काल में उन्होंने सद्कार्य ही किये | देव मन्दिरों के भूमिपूजन, शिलान्यास, निर्माण, प्रतिष्ठा एवं औषधालय, विद्यालय तथा धर्मशालाओं की स्थापना में आपके विपुल योगदान से आपकी धर्म भावना स्पष्ट झलकती है। दीन-दु:खियों, साधर्मिक भाइयों तथा सेवा संस्थाओं में आर्थिक एवं अन्य योगदान देना आप अपना कर्त्तव्य मानते थे । अनेक लोगों को आपने औद्योगिक क्षेत्र में प्रशिक्षित कर उनके उद्योग खुलवाए तथा उन्हें स्वावलम्बी
बनाया ।
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लाला खैरायती लाल का जन्म 15 फरवरी, सन् 1902 में धर्ममूर्ति, लाला नरपतराय एवं राधा देवी के परिवार में हुआ था । आप जेहलम (पाकिस्तान) के रहने वाले थे । स्कूली विद्या मिडल कक्षा तक ग्रहण कर आप 12-13 वर्ष की आयु में अपने पिता के सन् 1876 से चल रहे व्यापार में शामिल हो गए। 18 वर्ष की आयु में ही आप गुजरानवाला निवासी सुश्रावक लाला बनारसीदास जी बरड़ की सुपुत्री श्रीमती देवकी (अपर नाम
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