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जैन-विभूतियाँ लाला खैरायतीलालजी ने अपने जीवनकाल में धर्म, समाज, शिक्षा तथा जीवदया आदि क्षेत्रों में निरन्तर सहयोग देने के लिए निजी योगदान से धर्मार्थ ट्रस्ट स्थापित किये हैं, जिससे अन्य अनेक दानवीरों को भी प्रेरणा मिली है। अपने छ: पुत्रों तथा परिवार को सुसंस्कार देकर धर्मपरायण बनाया है, जिन्होंने लालाजी के नाम को और अधिक चमकाया है। 20 मार्च 1996 के दिन आपका देहावसान हुआ।
22 मार्च, 1996 को आयोजित उनकी विशाल श्रद्धांजलि सभा में गुणानुवाद के लिए, हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। उपस्थित जैन समाज ने लाला जी को इस बीसवीं शताब्दी का सर्वश्रेष्ठ श्रावक बताया और "शासन रत्न'' की उपाधि से मरणोपरान्त अलंकृत किया। उनका आदर्श जीवन भावी सन्तानों के लिए अनुकरणीय तथा अनुसरणीय रहेगा।
PM
KAND
KHARA