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जैन-विभूतियाँ
413 नियुक्ति जोधपुर में आयकर अधिकारी के पद पर हो गई। यह नियुक्ति एक अपवाद ही रही।
जोधपुर में तीन वर्ष के पश्चात् आपका स्थानान्तरण बीकानेर, दिल्ली, रतलाम आदि कई शहरों में हुआ। सन् 1961 में आपका प्रोमोशन प्रथम श्रेणी के आयकर अधिकारी के पद पर हुआ तथा 1972 में आप सहायक आयकर आयुक्त के पद पर पहुँचे। इस पद पर आपका स्थानान्तरण अजमेर हो गया।
आयकर आयुक्त के रूप में आपको क्षेत्र के आयकर विभागों के निरीक्षण के लिए विभिन्न स्थानों पर जाना पड़ता था, आपने कहीं भी किसी व्यक्ति का आतिथ्य स्वीकार नहीं किया।
सहायक आयकर आयुक्त के पद पर आपका अन्तिम स्थानान्तरण कानपुर हुआ। यहीं से आपने 1980 में अवकाश ग्रहण किया। कानपुर में आप रच-बस गये थे। यहाँ आपको बहुत सम्मान और लोकप्रियता मिली। कानपुर शहर एवं आस-पास में आपने सार्वजनिक और जनहितार्थ अनेक कार्य किये।
धर्मपत्नि श्रीमती नर्मदा कुम्भट के देहावसान के बाद आप नितान्त अकेले हो गये। घुटने में बहुत दर्द रहता था, चलना-फिरना भी कठिन हो गया था। 17 सितम्बर, 2002 की वह मनहूस संध्या थी, जब आपने सबसे अलविदा कहा तथा अरिहन्त शरण पहुँच गये।
जोधपुर में ओसवाल सिंह सभा के अध्यक्ष पद से आपने जोधपुर जैन समाज की बहुत सेवा की। इसके अतिरिक्त आपने जोधपुर के अन्य सार्वजनिक संस्थानों का अध्यक्ष या सचिव पद सुशोभित किया, जिनमें मुख्य थी- गवर्निंग काउन्सिल, सरदार कॉलेज, राजस्थान एसोशियेसन, श्री पार्श्वनाथ मित्र मण्डल, रतलाम, श्री बीशन-सुगन कुम्भट ट्रस्ट, जोधपुर, कुम्भट बन्धु संघ, पशु क्रूरता निवारण संघ, जोधपुर, सेवा मण्डल, जोधपुर, राजस्थान जैन परिषद्, जोधपुर।