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जैन- विभूतियाँ
6. संतश्री गणेशप्रसाद वर्णी (1874-1961)
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जन्म : 1874 (बुन्देलखण्ड) हंसेरा ग्राम पिताश्री : हीरालाल असाटी वैश्य (वैष्णव ) माताश्री : उजियारी बहन
दीक्षा : कुण्डलपुर (दमोइ) 1914 दिवंगति : 1961, ईसरी आश्रम (पारसनाथ )
तप से कृश, तेज से दीप्त, रंग सांवला, हृदय स्वच्छ, बालक-सा सरल स्वभाव, उन्नत ललाट, अनारंग में लीन अधखुले नैत्र, पण्डितों के पण्डित, अपनी ही कीर्ति प्रतिष्ठा से निर्लिप्त एक ऐसा व्यक्ति जो वर्षों तक नंगे पाँव, एक चादर ओढ़े बिना सर्दी-गर्मी की परवाह किए गाँवगाँव, शहर - शहर, जन-जन में अहिंसा और सत्य की अलख जगाता घूमता रहा - धनकुबेर उसके पाँवों में लक्ष्मी बिखरते चलते - ऐसे ही निर्विकार संत थे श्री गणेशप्रसाद वर्णी ।
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स्वतंत्रता के पुजारियों के तीर्थ स्थान झांसी जिले के हंसेरा ग्राम से सन् 1874 में असाटी वैश्य श्री हीरालाल के घर माता उजियारी बहन की कुक्षि से एक बालक का जन्म हुआ । नामकरण हुआ - गणेशप्रसाद। पारिवारिक आर्थिक स्थिति अच्छी न थी । सन् 1980 में यह परिवार मंडावरा जा बसा । परिवार वैष्णव धर्मी था । परन्तु जैनों के 'नवकार मंत्र' पर पिता की अपार श्रद्धा थी । बालक गणेश ने मंत्र कंठस्थ कर लिया ।
यहीं उनकी मिडल तक की शिक्षा सम्पन्न हुई। मंडावरा में ग्यारह शिखर बंद जैन मन्दिर थे। कौतुहलवश गणेशप्रसाद घर के सामने के जैन मन्दिर में भक्ति पूजन निरखते एवं रुचिपूर्वक प्रवचन भी सुनते। ये पूर्वभव के संस्कारों का ही परिणाम होगा जो बालक गणेश को रात्रि भोजन त्याग और अणछाणे पानी का त्याग आकर्षित करने लगा। उनको