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जैन-विभूतियाँ से कृत्य-कृत्य होते। उनकी प्रेरणा से अनेक राज्यों में पशु-वध निषेध किया गया। वे भक्त शिरोमणि आनन्दघन, श्रीमद् देवचन्द्र एवं उपाध्याय यशोविजयजी के जीवन एवं साहित्य से बहुत प्रभावित थे। आचार्य बुद्धिसागर जी ने उनके जीवन चरित्र लिखकर उनके दर्शन एवं स्तवनों की मार्मिक मीमांसा की।
आचार्य जी ने पालीताना में जैन गुरुकुल की स्थापना करवाई एवं बड़ोदा में जैन बोर्डिंग की स्थापना करवाई। आपने अनेक जिनालयों में प्राण-प्रतिष्ठा करवाई, बीजापुर में हस्तलिखित ग्रंथों के संग्रहार्थ 'ज्ञान मन्दिर' की स्थापना करवाई। अनेक पाठशाला एवं धर्मशालाओं की स्थापना आपकी प्रेरणा से हुई। माणसा में स्थापित 'श्री अध्यात्म ज्ञान प्रसारण मंडल' आपके ग्रंथों का प्रकाशन बराबर करता रहा है।
उन्हें ज्योतिष स्वयं सिद्ध थी-अपना अंतिम समय जानकर सं. 1981, ज्येष्ठ बदी 2 के दिन वे महुड़ी से बीजापुर पधारे। नियत समय पर अपने प्रिय मंत्र 'ऊँ अर्हम महावीर' का जाप प्रारम्भ कर दियाएकत्र हुई मानव मेदिनी ने जाप चालू रखा। आपने पद्मासन लगाकर समाधि ली। नियत समय पर उन्होंने अंतिम श्वांस छोड़ी एवं स्वर्गस्थ हुए। उनके निर्मल अंत:करण से सं. 1967 (सन् 1810) में निकली भविष्यवाणी "राजाओं की राजशाही का लोप होगा, विज्ञान के माध्यम से एक खण्ड के समाचार तत्क्षण दूसरे खण्ड में सम्प्रेषित होंगे।'' अक्षरश: सत्य हो रही है।