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जैन-विभूतियाँ _104. श्री शांतिप्रसाद साहू (1911-1977)
जन्म : नजीबाबाद (यू.पी.), 1911 पिताश्री : दीवानसिंह साहू माताश्री : मूर्ति देवी दिवंगति : दिल्ली, 1977
- 20वीं सदी के सद्गृहस्थ जैन धर्म-प्रभावकों में सर्वोपरि श्रावक शिरोमणि सेठ शांतिप्रसाद साहू माने जाते हैं। धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की समन्वित साधना को समर्पित साहूजी ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा एवं दूरदेशी से सामाजिक, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं धार्मिक-सभी स्तरों को अपने सत्कार्यों से सुवासित किया।
उत्तरप्रदेश के बिजनौर जिले में हिमालय की तलहटी में बसें ग्राम नजीबाबाद में सन् 1911 में साहू दीवानसिंह के घर उनकी सहधर्मिणी मूर्तिदेवी की कुक्षि से एक बालक का जन्म हुआ। नाम रखा गया- शांति प्रसाद । पितामह सलेखचन्द्र उस प्रदेश के विख्यात समाज-सेवक थे। बालक की प्रारम्भिक शिक्षा नजीबाबाद में हुई, तदुपरांत बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एवं आगरा यूनिवर्सिटी से स्नातकीय परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। धार्मिक संस्कार उन्हें माता-पिता से विरासत में मिले । उनका विवाह प्रसिद्ध उद्योगपति श्री रामकृष्ण डालमिया की पुत्री रमा रानीसे हुआ। अल्पायु में ही मातृ वियोग होने से रमारानी का लालन-पालन महात्मा गाँधी के परम भक्त सेठ जमनालाल बजाज के सान्निध्य में हुआ। देश प्रेम, आत्मविश्वास एवं सर्वधर्म समभाव के संस्कार उन्हें बचपन से मिले । साहू परिवार इस मणि-कांचन संयोग से थोड़े ही समय में भारत के समाज सेवी कुटुम्बों में अग्रगण्य हो गया। अपनी कुशाग्र बुद्धि, सही सहायकों की परख एवं उदार नीति के कारण साहूजी ने विविध व्यवसायों एवं उद्योगों में अभूतपूर्व सफलता अर्जित की।