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जैन- विभूतियाँ
पदमानन्दजी के सहयोग से उन्होंने अखिल भारतीय मुनि - मण्डल बनाया एवं "मुनि' नाम से एक मासिक पत्र का शुभारम्भ किया। अखिल भारतीय ओसवाल सभा की स्थापना में आपका प्रमुख हाथ था। सन् 1934 में अजमेर में आयोजित अखिल भारतीय ओसवाल सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन के आप स्वागताध्यक्ष चुने गए थे | मालेगाँव में हुई सभा की कार्यकारिणी की बैठक में एक हजार प्रतिनिधियों ने भाग लिया था । जलगाँव में आपने जैन बोर्डिंग की स्थापना की । खानदेश एजुकेशन सोसायटी' नामक शिक्षण संस्थान का प्रारम्भ आप ही के बीस हजार रुपयों के अवदान से हुआ। इस संस्थान ने हजारों रुपए जरूरतमंद ओसवाल छात्रों में वितरित किये । जामनेर में अपनी माता श्रीमती भागीरथी बाई की स्मृति में एक ग्रंथागार बनवाया । चादंवड़ के "नेमिनाथ ब्रह्मचर्याश्रम के आप अध्यक्ष रहे ।
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सन् 1916 में जब अनाज बहुत महँगा हो गया और अकाल की स्थिति बन गई, जामनेर की गरीब प्रजा जब तबाही से ग्रस्त थी, उस समय आपने लगातार बारह महीने तक जनता को सस्ते दामों में अनाज सप्लाई करने का बीड़ा उठाया और जनता की प्रशंसा के हकदार बने। इसी तरह प्लेग और इनफ्लूएंजा महामारियों के समय भी आपने गरीब जनता की सेवा की । पंचायतों की समस्याएँ सुलझाने के लिए जैन एवं इतर समाज के लोग भी आपकी गुहार लगाते थे। आपने जामनेर में एग्रीकलचर फार्म एवं केटल ब्रीडिंग फार्म खोले ।
आपके पूर्वज जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी सम्प्रदाय को मानने वाले थे। आपने सर्वप्रथम सभी धर्मों की मान्यताओं एवं सिद्धांतों का भली प्रकार अध्ययन किया। जैन दर्शन के अलावा वेदान्त, पातंजलि दर्शन, मुस्लिम व ईसाई धर्म ग्रंथों, आर्य समाज की मान्यताओं की बारीकीयों को समझा। अपने बगीचे में एक योगशाला का निर्माण कराया। आपने अनुभव किया कि इस जगत में तीन प्रकार के धर्म प्रचलित हैं - ईश्वरीय धर्म, प्राकृतिक धर्म एवं मनुष्यकृत धर्म । सत्य, अहिंसा और निर्बेर शांति भावना ईश्वरीय धर्म है, भूख और प्यास मिटाना प्राकृतिक धर्म है । परन्तु मनुष्यकृत धर्मों की भित्ति स्वार्थ और भेदभाव पर स्थित है। अत: सभी मनुष्यकृत धर्म विकृत हो जाते हैं।