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जैन - विभूतियाँ
इस बीच जामनेर के धनपति सेठ लक्खीचन्दजी ललवानी गोद लेने के लिए एक बच्चे की तलाश में थे। बारह अन्य उम्मीदवार भी थे । लक्खीचन्द जी को जब राजमल की खबर लगी तो वे मिलने आए । लक्खीचन्द जी उनके प्रतिभा से आकर्षित हुए। उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से राजमल को सन् 1906 में गोद ले लिया। इसके बाद ही उनका भाग्य चमक उठा।
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राजमल ऐश्वर्य के बीच भी कर्मवीर बने रहे । अहंकार ने उन्हें स्पर्श तक नहीं किया। बल्कि विनयशीलता एवं जागृति दिनों-दिन विकसित हुई । सन् 1907 में सेठ लक्खीचन्द का स्वर्गवास हो गया । मात्र 13 वर्ष की वय में राजमल ने पूरी जिम्मेदारी से जमींदारी संभाली। दूरदर्शिता और बुद्धिमानी से उन्होंने व्यावसायिक प्रवृत्तियों का संचालन कर थोड़े ही दिनों में ख्याति अर्जित कर ली। सन् 1914 में हैदराबाद के मशहूर धनपति दीवान बहादुर सेठ थानमलजी लूणिया की सुपुत्री से उनका विवाह हुआ ।
प्रथम महायुद्ध में महात्मा गाँधी की अपील पर सेठ राजमल ने पचास हजार रुपए सरकार को 'वार लोन' रूप में प्रदान किए। सरकार ने प्रसन्न होकर उनके तत्कालीन निवास जलगाँव में उनका एक Statue बनवाकर स्थापित करवाया। जब भारत का स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा तो आप तन-मनधन से उसमें कूद पड़े। सन् 1921 में महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन छेड़ा तो आपने उत्साह से उसमें भाग लिया । फलस्वरूप सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा। आपके परिवार के सभी निजी हथियार जब्त कर लिए गए। सन् 1922 में जलगाँव में बम्बई प्रांतीय काँग्रेस कमिटी का अधिवेशन हुआ तो आप उसके अध्यक्ष मनोनीत हुए। लोकमान्य तिलक जब काले पानी से लौट कर महाराष्ट्र आए तो आप स्वागत समिति के अध्यक्ष थे। दो वर्ष पूर्व 'स्वदेशी प्रदर्शनी' आयोजित हुई तब भी आप ही स्वागताध्यक्ष थे। सन् 1922 में ही आप बम्बई लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए। खादी के वस्त्र पहनने का व्रत था। सन् 1936 में वे काँगेस की तरफ से प्रांतीय एसेम्बली के सदस्य चुने गए। इसी से उनकी लोकप्रियता उजागर होती है।
आपने सामाजिक स्तर पर ओसवाल जाति में सुधार की लहर पैदा कर दी। खानदेशीय ओसवाल सभा की स्थापना का श्रेय आपको ही है । मुनि