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जैन-विभूतियाँ
393 सोच चालित वाहनों (Auto Rikshaw) के उत्पाद एवं विकास पर केन्द्रित हो गई। इस हेतु उन्होंने इटली की एक कम्पनी से अनुबन्ध किया एवं भारत में ही दो एवं तीन पहिये के वाहनों के निर्माण में लग गए, वे सफ़ल हुए। प्रथमत: इनकी निर्मिति बजाज ग्रुप की साझेदारी में शुरु हुई। सन् 1958 एवं 1960 में क्रमश: बजाज टेम्पो एवं बजाज ऑटो प्रतिष्ठान स्थापित हुए। सारे भारत में उनके श्रृंखलाबद्ध वितरण केन्द्र स्थापित करने का श्रेय नवलमलजी को ही है।
वे वास्तव में मौलिक सूझ-बूझ वाले क्रांतद्रष्टा थे। सन् 1975 में उद्योग से निवृत्त होकर वे सम्पूर्णत: सामाजिक एवं शैक्षणिक सेवा कार्यों में लग गये। सन् 1985 में वे अन्ना साहब हजारे के सेवा कार्यों से जुड़े। वे हिन्द स्वराज्य ट्रस्ट की स्थापना में सहयोगी बने। जैन दर्शन एवं प्राकृत भाषा के सन्वर्धनार्थ 'सन्मति तीर्थ' की स्थापना की। महाराष्ट्र में ओसवाल जाति की हजारों महिलाएँ इस संस्थान से उपकृत हुई है। जैनोलोजी में शोधार्थ उन्होंने मुक्त हस्त अवदान दिये। पुने के भन्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च संस्थान के प्राकृत-आंग्ल भाषा शब्दकोश के निर्माणार्थ सहयोग गत 15 वर्षों से चल रहा है। इस हेतु दस शोधार्थियों के निरन्तर सत्-प्रयास के लिए अर्थ सौजन्य की व्यवस्था कर वे समस्त जैन समाज के अजस्र साधुवाद के पात्र बने।
वे उपाध्याय अमर मुनि महाराज के क्रांतिकारी विचारों के प्रशंसक एवं सक्रिय सन्योजक थे। उस स्वप्नद्रष्टा मुनि के आध्यात्मिक अनुष्ठान राजगृह में 'वीरायतन' की स्थापना और विकास में उनका दो शताब्दियों का सक्रिय सहयोग स्तुत्य था। मुनिजी की स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिए नवलमलजी ने पूना के खेड़ स्थल के समीप 25 एकड़ जमीन दान देकर 'अमर प्रेरणा ट्रस्ट' की स्थापना की। यहीं उन्होंने जे. कृष्णमूर्ति फाउन्डेशन के ऋषि वेली स्कूल की आदर्श संरचना से प्रभावित होकर 70 एकड़ का एक भूखण्ड फाउन्डेशन को उसी तरह के एक नये स्कूल की स्थापनार्थ प्रदान किया।
सन् 1997 में यह चमकता सितारा सदा-सदा के लिए अस्त हो गया। वे संयुक्त परिवार की टूटती परम्परा से त्रस्त समाज के महिला वर्ग की