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जैन-विभूतियाँ 100. श्री नवलमल फिरोदिया (1910-1997)
जन्म
: पूना, 1910
पिताश्री
: कुन्दनमल फिरोदिया
दिवंगति
: 1997, पूना
श्री कुन्दनमलजी के मन्झले सुपुत्र नवलमलजी भारतीय प्रौद्योगिकी के · क्षितिज पर एक नक्षत्र बनकर उभरे । उनका जन्म सन् 1910 में हुआ। पिताश्री कुन्दनमलजी फिरोदिया की राष्ट्रीय भावनाओं के अनुरूप वे गांधियन आदर्शों के ढाँचे में ढले। अपने स्कूली जीवन से ही उन्होंने खादी अपना ली। सन् 1932 के असहयोग आन्दोलन में वे एक छात्र नेता बनकर उभरे एवं जेल गये। स्वतन्त्रता यज्ञ में आहुति देने की प्रबल आकांक्षा के कारण ही उन्होंने अपने सुनहरे भविष्य को दांव पर लगा दिया एवं इंग्लैण्ड के 'फैराडे हाउस इन्स्टीट्यूट' के एलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के स्नातकीय कोर्स में सफल प्रवेश के बावजूद भारत में रहकर विधि स्नातक बने एवं वकालत का पेशा चुना।
नवलमल जी सामाजिक क्राति के सूत्रधार थे। जब रूढ़िग्रस्त ओसवाल पंचायत ने एक विधवा का विवाह संयोजित करने पर समाज सुधारक श्री कनकमलजी मुणोत को 'समाज-बहिष्कृति' का फ़तवा दिया तो नवल मलजी ने पूरे मनोयोग से उसका विरोध किया। सन् 1942 में वे गाँधीजी के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में शरीक हुए एवं जेल गये। जेल से मुक्त हुए तो उनकी आँखों में भारत के स्वर्णिम औद्योगिक भविष्य का सपना लहरा रहा था। उन्होंने वकालत एवं राजनीति से विदा ली एवं सम्पूर्णत: भारत के औद्योगिक विकास को समर्पित हो गये। तभी महाराष्ट्र विधि मण्डल में उठे 'मानवीय हाथों' से खींचे जाने वाले रिक्शा चालकों की त्रासदी से सम्बन्धित विवाद ने नवलमल जी की विचारधारा को नई दिशा दी। उनकी