________________
जैन-विभूतियाँ
391 एज्यूकेशन सोसायटी (जिला मद्रास) की नींव पड़ी। आप वर्षों तक इस संस्था के अध्यक्ष रहे। आपने एस.एस. जैन बोर्डिंग हाउस, मद्रास तथा ए.जी. जैन हाई स्कूल, मद्रास की भी स्थापना की। वे बड़े कर्तव्यनिष्ठ एवं धर्मपरायण थे। विभिन्न जन-कल्याणकारी प्रवृत्तियों के लिए सन् 1939 में जोधपुर महाराजा ने उन्हें पालकी एवं सिरोपाव बख्श कर सम्मानित किया।
सन् 1947 में श्री चौरड़िया ने ''श्री अमरचंद मानमल सेंटेंनरी ट्रस्ट'' बनाया। सन् 1942 में उन्होंने अगरचंद मानमल जैन कॉलेज की स्थापना की, जो आज मद्रास के चोटी के कॉलेजों में गिना जाता है। वे भगवान महावीर अहिंसा प्रचार संघ एवं रीसर्च फाउन्डेशन फॉर जैनोलोजी संस्थानों के अध्यक्ष रहे।
राजस्थान के कुचेरा नामक ग्राम से चौरड़िया जी को सदा विशेष प्रेम रहा। वहाँ उन्होंने सन् 1927 में एक नि:शुल्क आयुर्वेदिक औषधालय की स्थापना की। उन्हीं दिनों अपनी जन्मभूमि नोखा में भी उन्होंने एक आयुर्वेदिक औषधालय की स्थापना की, जो कालान्तर में सरकारी अस्पताल बन गया और आज 'सेठ श्री सोहनलाल चौरड़िया सरकारी अस्पताल'' के नाम से प्रसिद्ध है।
सन् 1950 में अखिल भारतवर्षीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेंस के मद्रास अधिवेशन के अवसर पर श्री मोहनमल चौरड़िया स्वागताध्यक्ष रहे। सन् 1971 और पुन: सन् 1981 से 1984 तक चौरड़िया जी कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष पद पर रहे। जैन भवन, नई दिल्ली में उन्होंने चौरड़िया ब्लॉक बनवाया जो सदा उनकी यादगार रहेगा।
श्री चौरड़िया की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक सेवाओं तथा भारतीय उद्योग में उनके द्वारा एक कीर्तिमान स्थापित करने के कारण भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें 26 जनवरी, 1972 को 'पद्मश्री'' के अलंकरण से सम्मानित किया। 5 फरवरी, सन् 1985 को चौरड़िया जी का देहावसान हो गया। कोट्याधीश होते हुए भी आप निरभिमानी कर्मयोगी थे।