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जैन- विभूतियाँ
99. श्री मोहनमल चोरड़िया (1902-1985)
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जन्म
1902
: नोखा, पिताश्री : सिरेमल चौरड़िया ( दत्तकसोहनलाल चोरड़िया)
माताश्री
: सायर कंवर
उपाधि : पद्मश्री (1972) दिवंगति : 1985
सेवा, साधना और समर्पण की मूर्ति पद्मश्री मोहनमलजी चौरड़िया स्थानकवासी जैन समाज के अनमोल रत्न थे। शिक्षा, धर्म और समाज की सेवा के साथ-साथ व्यक्ति-निष्ठता और सिद्धांत-प्रियता चौरड़िया जी के महनीय गुण थे। अखिल भारतवर्षीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष एवं अध्यक्ष पद पर रहते हुए आपने स्थानकवासी समाज के लिए अनेकानेक कार्य किये। आपके सप्रयास से कई संस्थाओं को जन्म, पोषण एवं अभिवृद्धि प्राप्त हुई।
श्री मोहनमल चौरड़िया का जन्म 28 अगस्त सन् 1902 को जोधपुर जिले के नोखा नामक ग्राम के निवासी श्री सीरेमल चौरड़िया के सामान्य परिवार में उनकी धर्मपत्नि सायरकंवर की कुक्षि से हुआ था। सन् 1917 में हरसोलाव ग्राम के निवासी श्री बालचन्द शाह की सुपुत्री नेनीबाई से उनका विवाह हुआ । विवाह के तुरन्त पश्चात् वे मद्रास आ गये। उनकी सदाचारी तथा धार्मिक भावना को लक्ष्य करते हुए सन् 1918 में श्री सोहनलाल चौरड़िया ने उन्हें गोद ले लिया। इस प्रकार वे एक धनी परिवार में आ गए। आपकी व्यावहारिक दृष्टि, कार्य कुशलता एवं सूझ-बूझ से व्यापार की खूब अभिवृद्धि हुई ।
श्री चौरड़िया ने सन् 1926 में श्री स्थानकवासी जैन पाठशाला को जन्म दिया, जिससे कालान्तर में श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन