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________________ 18 जैन-विभूतियाँ गुजरात के महसाणा जिले में बीजापुर ग्राम के पाटीदार श्री शिवजी भाई पटेल के घर श्रीमती अम्बा बाई की कुक्षि से वि.सं. 1930 (सन् 1874) के महाशिवरात्रि पर्व दिवस पर एक बालक का जन्म हुआ। शिवजी भाई खेतिहर थे। एक दिन खेत में वृक्ष की शाखा से लटकी झोली में बालक सो रहा था। अचानक एक काला नाग झोली पर फण फैलाए दिखाई दिया। माता-पिता यह देखकर काँप उठे। नाग बालक को कहीं काट न ले। मनौती माँगी। चन्द क्षणों बाद नाग सहज ही नदारद हो गया। माता-पिता ने सुख की सांस ली। इसीलिए बालक का नाम रख दिया-बेचरदास। बालक बड़ा होकर स्कूल जाने लगा। वहीं उसके जैन सहपाठी ने उसे सरस्वती-मंत्र का जाप सिखाया। बालक ने ग्राम के देरासर में पद्मावती देवी की प्रतिमा के समक्ष बैठकर मंत्रजाप शुरु कर दिया। शनै:-शनै: आश्चर्यजनक रूप से बालक की धारणा एवं अभिव्यंजना विकसित होकर प्रार्थना काव्य में फूट पड़ी। इस नैसर्गिक काव्य शक्ति ने उनसे अनेक भजन, स्तवन एवं श्लोक लिखवाए। इसी समय बीजापुर में जैनाचार्य रवि सागर जी का पदार्पण हुआ। जिस राह से वे गुजर रहे थे अचानक दो भैंसे लड़ते हुए आ गए। ऐसा लगता था कि रविसागरजी उनके चपेट में आ जाएँगे। बालक बेचरदास ने जब यह देखा तो अपने हाथ का लट्ठ जोर से फटकार कर एक भैंसे के सर में दे मारा। रविसागरजी बच गए। उन्होंने बेचरदास को पास बुलाकर प्रेम से समझाया- ''भाई जानवर को इतने जोर से नहीं मारते, उसे भी कष्ट होता है।'' बेचरदास के हृदय में जैसे करुणा की बाँसुरी बज उठी। इस एक घटना ने बालक के समग्र जीवन को परिवर्तन के कगार पर ला खड़ा किया। किसी पूर्व जन्म का ऋणानुबंध रहा होगारविसागरजी महाराज की प्रेरणा से बेचरदास पूर्णत: उन्हें समर्पित हो गया। उनके सहवास से अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू एवं अर्धमागधी भाषा एवं ग्रंथों का परायण उसका साध्य बन गया। विद्याभ्यास के बाद पास ही के आजोल ग्राम की पाठशाला में अध्यापन शुरु कर दिया। रविसागर जी के सम्पर्क से जैन संस्कार उनके जीवन के प्रेरणास्रोत बन गए। उन दिनों रविसागरजी वृद्धावस्था के कारण महसाणा में स्थिरवास कर रहे
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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