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जैन-विभूतियाँ ___5. आचार्य बुद्धिसागर सूरि (1874-1924)
जन्म : बीजापुर, 1874 पिताश्री : शिवजी भाई पटेल माताश्री : अम्बा बाई आचार्य पद : 1913, पोथापुर दिवंगति : बीजापुर, 1924
भारत में अंग्रेजी राज्य ने 200 वर्षों तक भारतवासियों को राजनैतिक एवं मानसिक गुलामी से त्रस्त ही नहीं रखा, भारत के विभिन्न अंचलों को इसाई धर्म के प्रचार एवं धर्म परिवर्तन के जहर से भी ग्रसित रखा। उनके इस षड्यंत्र के शिकार हुए ग्रामांचलों के गरीब, भोलेभाले अनपढ़ ग्रामीण या दूरदराज पहाड़ी अंचलों में रहने वाले आदिवासी। ईसाई पादरियों ने उन्हें लुभाने एवं प्रभावित करने के लिए नाना हथकण्डों का इस्तेमाल किया। अबोध जनता को ईसा के ईश्वरीय चमत्कारों से मुग्ध करने के लिए पादरी बहुधा दो मूर्तियों का इस्तेमाल करते-एक भारी पत्थर की बनी भगवान विष्णु की प्रतिमा और दूसरी ईसा की रंगीन हल्की काष्ठ प्रतिमा। वे एक पानी भरा टब मंगवा कर कहते-तुम्हें इस भवसागर से पार करने में जो मददगार होगा वह स्वयं भी तो पानी में तैर सकेगा-यह कहकर बार-बारी वे दोनों मर्तियाँ टब में छोड़ देतेविष्णु डूब जाते और ईसा तैरते रहते। ग्रामीण आश्चर्य विमुग्ध होकर ईशा की प्रतिमा के आगे नतमस्तक होकर ईसाई धर्म स्वीकार कर लेते। इस ढकोसले की पोल खोली बेचरदास नामक एक युवक ने। उसने पादरी को भगवान की अग्नि परीक्षा के लिए चुनौती दी। जैसे ही ईसा की काष्ठ प्रतिमा आग पर रखी गई, वह धू-धू कर जल गई, विष्णु की प्रतिमा का कुछ न बिगड़ा। पादरी बड़ा शर्मिन्दा हुआ। ग्रामीणों को इस विषाक्त प्रचार से उबारने वाले युवक बेचरदास कालान्तर में बुद्धिसागर सूरि नाम से प्रख्यात हुए।