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जैन- विभूतियाँ
95. श्री हरखचन्द नाहटा (1936-1999)
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जन्म
पिताश्री
माताश्री
उपाधि
दिवंगत :
:
बीकानेर,
1936
भैरूदानजी नाहटा
:
: दुर्गादेवी
:
उद्योग रत्न
1999
जीवन के प्रत्येक मोड़ को सहजता से स्वीकार कर तदनुरूप अपने आपको ढालना और प्रत्येक क्षण को पूर्ण अन्तरंगता एवं जीवन्तता से जीना ही उनकी जीवन यात्रा की कथा है।
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मरुधरा राजस्थान की शान, ऐतिहासिक नगर बीकानेर के सुसम्पन्न एवं सुसंस्कृत नाहटा परिवार की यशस्वी परम्परा में इस कुलदीपक का जन्म 18 जुलाई, 1936 को सेठ भैरूंदानजी नाहटा के घर श्रीमती दुर्गादेवी की रत्नकुक्षि से हुआ। जीवट स्वाभिमानयुक्त ओज एवं विद्या प्रेम की समृद्ध परम्परा इन्हें विरासत में मिली। प्रबल पुरुषार्थी पुरखों की अदम्य इच्छाशक्ति एवं जीवट का प्रतिफल था कि 175 वर्षों पूर्व सुदूर आसाम के ग्वालपाड़ा, सिलचर, सिलहट (वर्तमान बांग्लादेश), करीमगंज, अगरतल्ला, कोलकाता, कानपुर आदि स्थानों में अपना व्यावसायिक साम्राज्य स्थापित किया । इन्हें अपने पितामह सेठ शंकरदानजी से दानशीलता तथा पिताश्री भैरूंदानजी से विनम्रता, सहिष्णुता एवं सेवाभाव विरासत में मिले। मातुश्री दुर्गादेवी द्वारा संम्प्रेषित धार्मिक व सदाचार के संस्कार की छाप इनके जीवन में स्पष्ट परिलक्षित होती थी। इनके चाचा स्व. अगरचन्दजी नाहटा एवं अग्रज 'साहित्य वाचस्पति' श्री भंवरलाल नाहटा प्राकृत भाषा, साहित्य, जैन आगम साहित्य, कला तथा अन्य धर्मग्रन्थों के ख्याति प्राप्त अधिकारी विद्वान थे । नाहटा परिवार के इतिहास व कला प्रेम की अक्षय कीर्ति पताका फहरा रहा है बीकानेर स्थित संग्रहालय 'अभय जैन ग्रंथागार, जिसमें 85,000 से अधिक अमूल्य ग्रंथों, दुर्लभ हस्तलिखित पाण्डुलिपियों तथा कला चित्रों के