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जैन-विभूतियाँ
371 अद्वितीय संकलन ने भारत ही नहीं, सुदूर इटली, रूस आदि के मनीषी विद्वानों को मुग्ध तथा स्तंभित किया है।
संकल्पशील एवं कर्मवीर नाहटाजी ने बीकानेर में शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत कोलकाता में कॉलेज शिक्षाकाल के दौरान ही अपना व्यापारिक जीवन प्रारम्भ किया। एक दूरदर्शी युवा उद्योगकर्मी, जो लीक से हटकर कुछ नया करने के सपने संजाए हुए था, ने सुदूर त्रिपुरा के दुर्गम क्षेत्रों में सड़क परिवहन का व्यवसाय प्रारम्भ किया। त्रिपुरा की सबसे बड़ी रेलवे ऑउट एजेन्सी-त्रिपुरा टाउन ऑउट एजेन्सी का संचालन करते हुए अपने व्यय एवं जोखिम पर परिवहन हेतु सड़कों का निर्माण कराया, जिससे उस दुर्गम व जनजाति बहुल क्षेत्र एवं उसके निवासियों के आर्थिक विकास को गति मिली। अपने पैतृक व्यवसाय से परे इन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा एवं कोलकाता में टैक्नीशियन स्टूडियो के माध्यम से पूर्वी भारत में फिल्म निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। सत्यजित राय, ऋत्विक घटक, बासु भट्टाचार्य जैसे विश्व विख्यात निर्देशक इनके स्टूडियो से जुड़े हुए थे, जिनके निकट संपर्क से इनकी कलात्मक अभिरुचि, उदारवादी दृष्टिकोण तथा सर्वधर्म समभाव वाले संस्कारों ने अभिव्यक्ति का नया माध्यम पाया। अपनी सृजनात्मक आकुलता तथा कला प्रेम की अभिव्यंजना को रूपान्तरित किया उन्होंने 'युग मानव कबीर' का निर्माण कर। कालान्तर में उन्होंने दिल्ली को अपनी कर्मस्थली बनाया तथा फिल्म फाइनेंस एवं भूमि व्यवसाय में पदार्पण कर अपनी दूरदर्शिता, व्यावसायिक चातुर्य एवं स्पष्ट व्यवहार के कारण आशातीत सफलता प्राप्त की। उद्योग व व्यवसाय क्षेत्रों में उनकी बहुआयामी सेवाओं की स्वीकृति स्वरूप भारत के उपराष्ट्रपति द्वारा उन्हें 'उद्योग रत्न' अलंकरण से विभूषित किया तथा दिल्ली के उपराज्यपाल ने भी उन्हें सम्मानित किया।
गौरवर्ण, लम्बे, सुदर्शन व सौम्य स्वभाव के श्री नाहटा जी जहाँ एक कुशल जननायक थे, वहीं अडिग संघर्षशील नेता थे, जो मानवीय अस्मिता, समानता तथा सम्मान की रक्षा हेतु सतत् तत्पर रहते थे। वे समाज व इसके विभिन्न घटकों के विरुद्ध होने वाले अन्याय, विभेद, अत्याचार, असमानता, वैमनस्य का प्रतिकार करने के लिए सदैव जागरूक व सचेष्ट रहते थे।