________________
368
जैन-विभूतियाँ उन्हें खूब सफलता मिली और सरकार को विदेशी मुद्रा। वे पहले उद्योगपति थे जिन्होंने नेपाल से जूट का निर्यात शुरु किया। वे 'नेपाल के जूट किंग'' नाम से प्रसिद्ध थे। सन् 1962 में उन्होंने विराटनगर में स्वयंचालित चावल मिल की स्थापना की जो पूरे नेपाल में अपनी तरह की एक ही है। सन् 1963 में उन्होंने स्टेनलेस स्टील के बर्तनों का कारखाना लगाया जो देश ही नहीं विदेशों की माँग सम्पूर्ति भी करता है। आज इस उद्योग-समूह द्वारा ऑटोमोबाईल, कागज, एलोकट्रॉनिक्स, चीनी, वनस्पति आदि के अनेक उद्योग संचालित होते हैं एवं लगभग 17000 व्यक्ति काम करते हैं।
उनकी सत्प्रेरणा से नेपाल तराई क्षेत्र में उच्च शिक्षा का सूत्रपात हुआ। महाविद्यालय हेतु उन्होंने वृहत भू-खण्ड दान देकर छात्रों की सुविधा हेतु एक दुमंजिले छात्रावास का निर्माण कराया । नेपाल के अनेक अन्य क्षेत्र उनके शिक्षा अनुदानों से लाभान्वित हुए। अपने पुश्तैनी नगर रतनगढ़ में एक विशाल भू-खण्ड पर ''गोलछा ज्ञान मन्दिर'' के नाम का एक भव्य उपासना केन्द्र बनवाकर उसे लोक-कल्याणार्थ समर्पित किया। लाडनूं विश्व विश्रुत धार्मिक केन्द्र "जैन विश्व भारती'' की स्थापनार्थ प्रथम आर्थिक अनुदान