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जैन-विभूतियाँ यूनिवर्सिटी की स्थापना में भी आपका प्रमुख हाथ था। अनेकों शोध संस्थानों के आप जन्मदाता थे। आप आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी के अध्यक्ष रहे हैं। गिरनार, रणकपुर, आबू आदि तीर्थों एवं मन्दिरों के पुनरूद्धार में आपका सहयोग स्तुत्य रहा। आपके सद्प्रयत्नों से जैन मन्दिरों के दरवाजे हरिजनों एवं अछूतों के लिए खोल दिये गये। आपने समाज हितकारी कार्यों के लिए अपना जीवन अर्पण कर दिया। सन् 1955 में आपने मुनि श्री पुण्य विजयजी के सहयोग से भारतीय प्राच्य विद्याओं के विकासार्थ एवं जैन शास्त्रों के प्रकाशनार्थ "लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर'' की स्थापना की। इस संस्थान के संग्रहालय में 45000 हस्तलिखित प्राचीन ग्रंथों का अभूतपूर्व संग्रह है। सन् 1985 में गुजरात यूनिवर्सिटी परिसर के सामने इसके नये भवन का उद्घाटन हुआ। यहाँ अनेक शोधार्थी डॉ. दलसुखभाई मालवणिया के निर्देशन में शोधकार्य में संलग्न रहने लगे। पीएच.डी. की उपाधि के लिए यूनिवर्सिटी ने इस संस्थान को मान्यता दी।
सन् 1969 में भारत सरकार ने अपको ''पद्मभूषण'' की सम्मानित उपाधि से विभूषित किया। 20 जनवरी, 1980 को अहमदाबाद में हृदय गति रूक जाने से आपका देहावसान हुआ। आपके सुपुत्र श्री श्रेणिक भाई के कुशल निर्देशन में परिवार द्वारा संस्थापित सभी औद्योगिक शैक्षणिक एवं धार्मिक संस्थान सुचारू संचालित हो रहे हैं।