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जैन-विभूतियाँ कातर हो उठते थे और सर्वस्व लुटाने को तत्पर रहते । जैन थे परन्तु धर्माचार्यों को भी खरी-खरी सुनाने से नहीं चूके । लाडनूं में आयोजित धार्मिक क्रान्ति सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष के नाते 30 जनवरी, 1961 को उन्होंने दो टूक बात कही कि, 'आज धर्म के नाम पर आचार्य, साधु-संत, मठाधीश, पंडे-पुजारी इत्यादि अपनी पूजा और सेवा कराने में लगे हैं। इससे समाज और राष्ट्र के जीवन में निर्बलता आयी है। समय आ गया है कि अब सबका विघटन किया जाय। हम पुराने धर्म से निकलकर नये धर्म को धारण करने के लिए परिश्रम और सेवा करें । देश का साधु समाज जागे और समाज में आकर सेवा के जरिये राष्ट्र को नवीन ज्योति से जगमगा दे।"
(फतहपुर स्थित आजाद भवन) संवत् 1998 में उन्होंने अपना फतहपुर स्थित विशाल 'आजाद भवन' लोकार्पित कर दिया, जो कालांतर में नगर की शैक्षणिक, सामाजिक एवं राजनतिक प्रवृत्तियों का केन्द्र बना। थली के विभिन्न नगरों में बाल मन्दिरों की श्रृंखला ही खड़ी कर दी। अकाल से विपन्न या अग्निकांड से त्रस्त लोगों के लिए बिना भूख-प्यास की परवाह किये नोट बाँटते फिरे। संवत् 2021 में भारत जैन महामण्डल के सांगली अधिवेशन का अध्यक्ष चुनकर समाज ने उनका समुचित सम्मान किया।