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________________ 334 जैन-विभूतियों सेठ माणिकचन्द का प्रथम विवाह संवत् 1930 में हुआ जिससे उन्हें दो पुत्री रत्न प्राप्त हुए। द्वितीय विवाह से एक पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। विधि का विधान इस कौटुम्बिक सुख के प्रतिकूल बना तो संवत् 1937 में पिता की मृत्यु के बाद एक पुत्री को वैधव्य देखना पड़ा और कुछ समय बाद ही प्रथम पत्नि का स्वर्गवास हो गया। सेठ माणकचन्द इन विपदाओं से रंच मात्र भी न डिगे। उन्होंने अपने लौकिक उत्तरदायित्व निभाने में किंचित मुख नहीं मोड़ा। अपने परिग्रह परिमाण को भी व्रताधीन रखा। आर्थिक अनुदानों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण उनकी व्यक्तिगत सेवा थी, जिसके फलस्वरूप सामाजिक उन्नति की अनेक योजनाएँ क्रियान्वित हो सकी। संवत् 1945 में पंडित गोपालदास बरैया की प्रेरणा से मुंबई में "जैन सभा'' की स्थापना की। इस सभा के अन्तर्गत अनेक धार्मिक एवं सामाजिक हित की योजनाएं संचालित हुई। जैन पाठशालाएँ खोली, उनमें धार्मिक शिक्षा व परीक्षा चालू की, विविध मंदिरों में शास्त्र भंडार खोले, प्राचीन एवं हस्तलिखित ग्रंथों का संग्रह हुआ, तेजस्वी छात्रों को स्कॉलरशिप दी जाने लगी, आयुर्वेदिक औषधालय खुले, तीर्थों के जिर्णोद्धार हुए। संवत् 1956 में संस्था के अधिवेशन में प्रांतीय शाखाएँ खोलने का निर्णय हुआ। संवत् 1956 में सेठजी ने पं. गोपालदास बरैया के सम्पादकत्व में "जैन मित्र'' नामक जैन सभा का मासिक मुख पत्र निकालना शुरु किया। संवत् 1959 में आप ही की प्रेरणा से मथुरा में संयोजित भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के अधिवेशन में तीर्थ क्षेत्र कमिटी की स्थापना हुई, जिसके महामंत्री पद पर सेठजी ने वर्षों अपनी सेवाएँ दी। संवत् 1962 में बनारस में स्याद्वाद विद्यालय की स्थापना हुई। इसके प्रेरणास्रोत ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद थे। सेठजी के वरदहस्त से इस विद्यालय का उद्घाटन हुआ। यह विद्यालय जैन जगत के हजारों विद्यार्थियों एवं उच्च कोटि के विद्वानों का निर्माण स्थल सिद्ध हुआ। पं. नाथूरामजी प्रेमी की प्रेरणा एवं निर्देशन में जैन शास्त्रों के सम्पादन का कार्य सेठजी ने संचालित करवाया। प्रकाशित ग्रंथों की प्रतियाँ देश के
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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