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जैन-विभूतियाँ ___81. श्री चाँदमल ढढ़ा (1869-1933)
जन्म
: 1869
पिताश्री
: उदयमलजी ढढ़ा
पद/उपाधि : सितारे हिन्द
दिवंगति
: 1933
बीकानेर के ओसवाल वंश के ढढ़ा गोत्रीय श्रेष्ठि तिलोकसी के तीसरे पुत्र सेठ अमरसी नै हैदराबाद (दक्षिण) में 'अमरसी सुजानमल' नाम से व्यावसायिक फर्म स्थापित की। थोड़े समय में ही इस फर्म ने बड़ी प्रतिष्ठा अर्जित की। निजाम हैदराबाद के जवाहरातों का क्रय-विक्रय आपकी ही मार्फत होता था। सुरक्षा के लिए निजाम की ओर से आपके रहवास एवं विभिन्न प्रतिष्ठानों पर एक सौ जवान तैनात रहते थे। राज्य में आपके दावे बिना स्टाम्प फीस और बिना अवधि सीमा से सुने जाते थे। आपके दावोंमुकदमों के लिए निजाम सरकार ने एक स्पेशल कोर्ट 'मजलिसे साहुबान'' नियत कर रखा था। आपके पुत्र न था। दत्तक पुत्र नथमल के पुत्र सुजानमल हुए। उनके तीन पुत्रों की नि:संतान मृत्यु हो गई। चौथे पुत्र समीरमल भी नि:संतान थे। उन्होंने उदयमल को गोद लिया। उदयमलजी के पुत्र चांदमल जी हुए।
इनका जन्म सं. 1869 में हुआ। चांदमलजी ने मद्रास, कलकत्ता, सिलहट एवं पंजाब के अनेकों शहरों में साहूकारी व्यापारिक प्रतिष्ठान स्थापित किए। जावरा राज्य के आप खजांची मनोनीत हुए। हैदराबाद के निजाम एवं अन्य रियासतों के नरेश आपका बहुत सम्मान करते थे। निजाम ने आपको दरबार में कुर्सी एवं चार घोड़ों की बग्घी में बैठने का सम्मान दिया। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सी.आई.ई. (सितारे हिन्द) की