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जैन-विभूतियाँ
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(सरदारशहर स्थित गाँधी विद्या मन्दिर) मचलने लगा। उन्होंने सन् 1950 में पाँच लाख रुपये एवं जीवन के अमूल्य दस वर्ष की प्रथमाहुति प्रदान कर गाँधी विद्या मन्दिर की नींव रखी। श्रम एवं निष्ठा से 35 वर्षों के सतत प्रयास एवं 50 लाख रुपये से अधिक की समर्पित राशि से यह पौधा लहलहा कर वटवृक्ष बन गया। आज 1200 एकड़ भूमि पर हजारों विद्यार्थियों के लिए प्री-प्राइमरी से पोस्ट ग्रेजुएट एवं पी-एच.डी. की शिक्षा, छात्रावास, गौ-सेवा सदन, अनाथाश्रम, आयुर्वेद विश्वभारती आदि के माध्यम से शिक्षा, चिकित्सा एवं ग्रामोत्थान की विभिन्न प्रवृत्तियाँ वहाँ संचालित होती हैं । उदारचेता श्रेष्ठियों, केन्द्र एवं राज्य सरकार ने करोड़ों रुपए वहाँ लगाए हैं।
कन्हैालालजी ने साहित्यिक अभिरुचि से प्रेरित हो अनेक मौलिक नाट्य कृतियों, लोकगीतों एवं आध्यात्मिक काव्य का सृजन किया। उनके रचित सरस भक्तिगीत वे स्वयं अपने मधुर कंठ से सत्संग कार्यक्रमों में प्रस्तुत करते हैं। इस बीच सन् 1979 में वे कैंसर की भयंकर व्याणि से ग्रसित हो गए। प्रभु की कृपा से उन्हें जीवनदान मिला। सन् 1985 में वृन्दावन में स्वामी शारदानन्दजी से उन्होंने पूर्ण सन्यास का वरण किया एवं 'स्वामी रामशरण' नाम से संबोधित हुए। पुष्कर के निकट उनका मझोवला आश्रम आज त्याग और तपस्या की पुण्य धरा बनकर अपनी सुवास से महक रहा है।