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जैन-विभूतियाँ अनुसंधान केन्द्र आदि अनेक प्रवृत्तियं विकसित की। सन् 1954 में "ग्राम ज्योति केन्द्र'" और "आयुर्वेद विश्व भारती'' की स्थापना की एवं दो लाख रुपयों का अवदान दिया। आयुर्वेद का गहरा ज्ञान उन्हें पिता से विरासत में मिला था। रोगियों की नि:स्वार्थ सेवा को उन्होंने जीवन का ध्येय बना लिया था। बापा सेवा सदन की स्थापना इसी की एक कड़ी थी। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को उन्होंने नये आयाम दिए। कहते हैं, वे रोगी की व्यथा से द्रवित हो उसे अपने ऊपर ले लेने से भी नहीं चूकते थे। एक बार मोहनलाल जी जैन की लड़की के ज्वर ग्रस्त होने पर वे इतने द्रवित हुए कि बच्ची की नाड़ी धरे बैठे ही रहे-फलत: लड़की तो अच्छी हो गई पर उन्हें कई दिन ज्वर पकड़े रहा।
सन् 1960 के जल प्रलय के समय सरदार शहर क्षेत्र में अनेक मकान धराशायी हो गए। लाखों लोग बेघर हो गए। उस समय उन्होंने जीजान लगाकर सेवाकार्य का नियोजन किया। इस तरह शिक्षा, चिकित्सा और सेवा की त्रिवेणी के वे सूत्रधार थे। सरदार शहर में इण्डस्ट्रियल इस्टेट की स्थापना उनका अंतिम स्वप्न था जिसके लिए जयपुर जाते हुए सन् 1961 में एक कार दुर्घटना में इस कर्मवीर का असमय निधन होने से समाज की अपूरणीय क्षति हुई।
श्री कन्हैयालालजी दूगड़ जन्म : सरदारशहर, 1920 पिताश्री : सुमेरमलजी दूगड़ सन्यास : वृन्दावन, 1985
सरदारशहर के सुप्रसिद्ध चैनरूप सम्पतराम दूगड़ परिवार में जन्मे श्री कन्हैयालालजी को धार्मिक संस्कार विरासत में मिले । आपकी शिक्षा पारिवारिक पाठशाला में ही हुई। सन् 1948 में महात्मा गाँधी की नृशंस हत्या ने पूरे राष्ट्र को झकझोर दिया था। तरुण कन्हैयालाल की आँखों में बापू का दिखाया ग्रामांचल के आदर्श शिक्षण संस्थान का स्वप्न साकार होने को