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जैन-विभूतियाँ
327 कभी अधिक व्यक्ति आमंत्रित नहीं किए। एक बार पौत्र मिलापचन्द को डिप्थेरिया हो गया। उसके इंजेक्शन चोर बाजारों से ही उपलब्ध थे। आपने इजाजत न दी। कहते हैं कराधिकारी उनके हिसाब किताब को शत-प्रतिशत सही मानकर असेसमेंट करते थे। सन् 1968 में पुरानी हवेली की मरम्मत के समय सोने की छड़ें एवं चांदी की सिल्लियाँ बड़ी मात्रा में दिवालों में गड़ी हुई बरामद हुई। सेठजी ने तुरन्त उसकी सूचना अधिकारियों को दी। गहरी छान-बीन हुई। अन्तत: उनकी मिल्कियत साबित हुई और सोना-चाँदी उन्हें लौटा दिया गया। उन्हें आयुर्वेद का गहरा ज्ञान था। वे कवि हृदय थे। दोहों, सोरठों एवं छन्दों के प्रयोग वाली उनकी रचनाओं में आत्मोत्थान के प्रेरक तत्त्व समाहित थे। वे संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, बंगला आदि भाषाओं के अच्छे जानकार थे। सन् 1974 में वे स्वर्गस्थ हुए।
श्री भंवरलालजी दूगड़ जन्म : 1918 पिताश्री : सम्पतरामजी दूगड़ दिवंगति : 1961
सरदारशहर के चैनरूप सम्पतराम दूगड़ खानदान के सेठ सुमेरमल जी के दो पुत्र हुए- भंवरलाल जी और कन्हैयालालजी दोनों ही पुत्रों से ओसवाल समाज गौरवान्वित है। सेठ भंवरलाल जी का जन्म सन् 1918 में हुआ। कहते हैं, मां (राजलदेसर के श्री जयचन्दलाल जी बैद की पुत्री) इचरज देवी ने पुत्रों के जन्म से पूर्व दो सिंह शावकों का स्वप्न देखा था। बड़े होकर दोनों भाई समाज सेवा के क्षेत्र में अग्रणी बने। सन् 1948 में सेठ भंवरलालजी ने सरदार शहर में सेठ सम्पतराम दूगड़ विद्यालय की स्थापना की। कालान्तर में इन्होंने ही सेठ बुधमल दूगड़ डिग्री कॉलेज की स्थापना की।
आप बड़े आदर्शवादी और स्वप्नदर्शी थे। समाज हित की अनेक योजनाएं आपने क्रियान्वित की। गांधी विद्या मन्दिर के अन्तर्गत बालवाड़ी, बेसिक रीसर्च ट्रेनिंग कॉलेज, महिला विद्यापीठ, गोशाला, पशु चिकित्सालय,