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जैन-विभूतियाँ टैक्स आदि की मुआफी, चपरास, हाथी की सवारी, स्वर्ण-रजत-दण्ड आदि। जैन मतावलम्बी होते हुए भी विभिन्न धर्मों के साधु सन्यासी आपकी सत्संग में आते थे। आप धार्मिक परम्परा के विरुद्ध संगीत के शौकीन थे।
(सरदारशहर स्थित दूगड़ निवास की महफिल) यही संस्कार उनके पुत्र एवं पौत्रों में विकसित हुआ। अपने पुत्र सुमेरलालजी के विवाह के अवसर पर आपने 'महफिल' का निर्माण कराया, जिसके विदेशी झाड़-फानूसों की शानदार सजावट देखने अब भी दूर-दूर से लोग आते हैं।
सेठ सम्पतरामजी के पुत्र सेठ सुमेरमलजी (जन्म सन् 1893) बड़े निरभिमानी, विचारशील एवं व्यवहार कुशल व्यक्ति थे। इनकी ईमानदारी की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। अधिकारी को भूल बताकर अतिरिक्त कर चुकाना उनकी सदाशयता का द्योतक था। चीनी के कन्ट्रोल के समय किसी भी (सेठ सुमेरमलजी) कीमत पर ब्लेक से चीनी न खरीदना, यहाँ तक कि विशेष परमिट भी न लेना, अनुकरणीय उदाहरण था। विवाहों में सरकारी नियमों का उल्लंघन कर