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जैन-विभूतियाँ उपाधि से विभूषित किया। आपने साढ़े तीन लाख रुपयों की लागत से देशनोक के करणी माता के मन्दिर का अभूतपूर्व कलात्मक तोरण द्वार बनवाया जो अद्वितीय है। वे बड़े समृद्ध और उदार हृदय थे। सन् 1902 में बीकानेर नरेश ने आपके घर जाकर आपको सम्मानित किया। आपको विभिन्न राज्यों की ओर से प्रशस्ति-पत्र मिले । सन् 1933 में आपका स्वर्गवास हुआ।
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