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जैन - विभूतियाँ
की स्थापना का श्रेय आपको ही है। इस संस्थान से "सिंघी जैन ग्रंथ माला" के अन्तर्गत मुनिजी ने जैन आगम, जैन कथा साहित्य, भाषा, लिपि, स्थापत्य, धर्म सम्बंधी जैन वाङ्मय के अनेक दुर्लभ ग्रंथ विश्व - साहित्य को भेंट किए।
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जर्मनी के प्रसिद्ध भारत विद्याविद् एवं जैनदर्शन के उद्भट विद्वान डॉ. हर्मन जैकोबी, जिन्होंने कल्पसूत्र का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया,
श्री बहादुरसिंहजी सिंघी एवं अन्य जैन श्रेष्ठियों के साथ ।
सन् 1929 में सिंघीजी को बम्बई में हुई जैन श्वेताम्बर कॉन्फ्रेंस का सभापति चुना गया। पंजाब के गुजरानवाला स्थित जैन गुरुकुल के छठे अधिवेशन के भी आप सभापति निर्वाचित हुए ।