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जैन-विभूतियाँ
319 79. श्री भैरोंदान सेठिया (1866-1961)
जन्म
: कस्तूरिया, 1866
पिताश्री
: धर्मचन्दजी सेठिया
उपाधि
: समाज भूषण
दिवंगति
: 1961
अदम्य साहस/अनुपम बुद्धि-कौशल एवं औदार्य के प्रतीक, समाजभूषण विरुद से सम्मानित सेठ भैरोंदानजी सेठिया से समग्र जैन समाज गौरवान्वित हुआ है। मरूधरा में शिक्षा-प्रसार, नैतिक/धार्मिक प्रकाशन एवं बहुआयामी सेवा की त्रिवेणी प्रवाहित कर आपने अनुकरणीय आदर्श स्थापित किया। उद्योग-व्यवसाय, लोकोपकारी कार्यों एवं संस्कार चेतना के क्षेत्रों में ऐतिहासिक कीर्तिमानों का सृजन भी किया। साधारण परिस्थितियों में जन्म लेकर आपने श्रमनिष्ठता, लगन, बुद्धि-कौशल से सफलता की बुलन्दियाँ प्राप्त की, कल्पनातीत अर्थोपार्जन किया और मुक्त हस्त से समाज सेवा में इसका सदुपयोग कर समय की शिला पर सशक्त हस्ताक्षर किये।
सेठ श्री भैरोंदानजी का जन्म विक्रम सन् 1866 विजयादशमी के दिन बीकानेर जिलान्तर्गत कस्तूरिया ग्राम में श्रीमान् सेठ धर्मचन्दजी के घर हआ। अपने पिताश्री से धर्म परायणता, स्वधर्मी सहयोग एवं समाज सेवा के संस्कार विरासत में प्राप्त कर आपने इन्हें सदैव वृद्धिगत रखा। दो वर्ष की आयु में ही आपके पिताश्री का देहावसान हो जाने से आपकी शिक्षा में व्यवधान उपस्थित हो गया और आप नौ वर्ष की आयु में कलकत्ते पधारे। वहाँ से लौटकर शिवबाड़ी रहने लगे और तदनन्तर अपने अग्रज श्रीमान्