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जैन-विभूतियाँ ___78. श्री बहादुरसिंह सिंघी (1885-
)
जन्म
:
1885
पिताश्री : डालचन्दजी सिंघी
उपलब्धि : सिंधी जैन ग्रंथमाला
श्री बहादुरसिंह जी सिंघी भारत की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण एवं हर संवर्धन के लिए हमेशा याद किए जाएँगे। आपका जन्म सन् 1885 में हआ। दयालुता और मिलन सारिता आपमें कूट-कूट कर भरी थी। करोड़पति तो वे थे ही। परिवार की जमींदारी चौबीस परगना, पूर्णिया, मालदा एवं मुर्शिदाबाद जिलों में फैली हुई थी। आपका विवाह सन् 1897 में मुर्शिदाबाद के राय लखमीपतसिंह बहादुर की पौत्री से हुआ। आपकी फर्म हरिसिंह निहालचन्द में कलकत्ता सरसाबाड़ी सिराजगंज, अजीमगंज, फारबीसगंज आदि स्थानों पर पाट का व्यवसाय होता था।
सर्वाधिक श्लाघनीय था इनका विद्याप्रेम । अनेक विद्वानों के वे आश्रयदाता थे। जैन संस्कृति से उन्हें बहुत लगाव था। खोज-खोज कर अलभ्य और अमूल्य पुरातन ऐतिहासिक वस्तुओं का आपने संग्रह किया। ऐसे अरेबियन और परसियन हस्तलिखित ग्रंथ जो कभी दिल्ली के बादशाहों के पास थे और विश्व में बेमिसाल थे, आपके संग्रह की शोभा बढ़ाने लगे। कई पर तो स्वयं बादशाह के हस्ताक्षर थे। प्राचीन कुशान, गुप्त और हिन्दू राजाओं तथा मुसलमान बादशाहों के सिक्कों का अपूर्व संग्रह सिंघी जी ने किया। जैन संस्कृति, विज्ञान, स्थापत्य व भाषा के उन्नयन एवं प्राचीन धर्म ग्रंथों के शोध सम्पादन व प्रकाशन हेतु मुनि जिन विजयजी के आचार्यत्व में बोलपुर स्थित रविन्द्रनाथ ठाकुर के शांति निकेतन में सिंघवी जैन विद्यापीठ