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जैन-विभूतियाँ छोगमलजी भी स्वदेशी आन्दोलन से अछूते न रह सके। उन्होंने वकालत करते हुए भी खद्दर की पोशाक पहनी। उनके विदेशी वस्त्र वर्जन में द्वेष या हिंसा का भाव न था। बीकानेर काँग्रेस कमेटी ने तो उन्हें एडहाक कमेटी में नामजद किया।
कोलकाता में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा की स्थापना में आप सहभागी रहे। आप लगातार 20 वर्ष तक उसके सभापति रहे। देश के अनेक भागों में उसकी शाखाएं खुलवाई। तेरापंथी समाज ने आपकी सेवाओं का सही आकलन कर आपका अभिनन्दन किया एवं आपको 'समाजभूषण' की उपाधि से विभूषित किया। आपको समाज ने एक लाख रूपये की राशि भेंट की जिसे आपने तत्काल महासभा को समर्पित कर दिया। तेरापंथ में जब पारमार्थिक शिक्षण संस्था का अविर्भाव हुआ तो आप उसके प्रथम सभापति चुने गए। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य तुलसी ने जब अणुव्रत अभियान छेड़ा तो आप अणुव्रती संघ के प्रथम सभापति निर्वाचित हुए। आप सत्यशोध एवं निष्पक्ष चिंतन के हामी थे। आप सदैव कहते-उक्त मत की बात ठीक नहींऐसा उपदेश कभी नहीं देना चाहिए। ___कोलकाता में ओसवाल समाज की सार्वजनिक प्रवृत्तियों के संचालनार्थ एकमात्र संस्थान ओसवाल नवयुवक समिति की स्थापना हुई तो आप उसके सभापति चुने गए। आप अनेक आध्यात्मिक जनहितकारी एवं शैक्षणिक संस्थाओं से सम्बद्ध रहे - एशियाटिक सोसाइटी, महाबोधि सोसाइटी, संस्कृति परिषद्, मारवाड़ी छात्रावास, मारवाड़ी सम्मेलन, भारत चेम्बर ऑफ कॉमर्स आदि संस्थाओं में आपने सक्रिय योगदान दिया।
आप सदैव समाज के उत्थान के लिए प्रयत्नशील रहे । दहेज के विरोध एवं नारी जागृति के लिए आप सदैव सक्रिय रहते थे। दो ईसाई बालिकाओं के ओसवाल युवकों से विवाह का आपने पुरजोर समर्थन किया था। श्रीसंघ विलायती विवाद में विलायतियों के एक साथ पंगत में बैठकर खाना खाने के अपराध में मारवाड़ी धड़े की पंचायत ने आपके परिवार से बिरादरी व्यवहार बन्द कर दिया था। पर आप ऐसे अवरोधों के सामने झुके नहीं। सन् 1960 में आप दिवंगत हुए।