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________________ जैन-विभूतियाँ 315 77. श्री छोगमल चोपड़ा (1884-1960) जन्म : देराजसर (बीकानेर), 1884 पिताश्री : फूसराज चोपड़ा उपाधि : समाज भूषण दिवंगति : 1960 समाजभूषण श्री छोगमल चोपड़ा असाधारण साधु पुरुष थे। उनमें ज्ञान और आचरण का अद्भुत संयोग था। सहजता और सरलता की तो वे प्रतिमूर्ति थे। आपका जन्म सन् 1884 में देराजसर (बीकानेर) में हुआ। आपके पिता का नाम श्री फूसराज जी था। फूसराजजी मुर्शिदाबाद के सेठ गुलाबचन्द नाहटा की रंगपुर (बंगलादेश) गद्दी में मुनीम थे। छोगमलजी की प्रारम्भिक शिक्षा रंगपुर में ही हुई। वहाँ प्रसिद्ध विचारपति जस्टिस रणधीरसिंह बछावत के पिता उनके सहपाठी थे। विद्यार्थी जीवन के अंतिम सात वर्ष कोलकाता में बीते। वहां जगत सेठ की कोठी में रहते हए उनका परिचय लाडनूं के मेघराजी जी सरावगी से हुआ। मेघराजजी धार्मिक रुचि के सत्योन्मुखी व्यक्ति थे। उन्होंने मुसलमानों की कुरान-शरीफ भी पढ़ी थी। छोगमलजी के धर्म-विषयक संस्कार उन्हीं के सत्संग में विकसित हुए। आपने कोलकाता विश्वविद्यालय से कानून की स्नातक उपाधि ली। आप बहुभाषाविद् थे-बंगला, संस्कृत, अंग्रेजी एवं हिन्दी पर पूरा अधिकार था एवं गुजराती, उर्दू, अर्धमागधी का अच्छा ज्ञान था। विधि वक्ता के रूप में आपका बड़ा सम्मान था। कोलकाता के स्माल काज कोर्ट बार एसोसियेसन के आप सभापति एवं कोषाध्यक्ष रहे। झूठे मुकदमें लेने से आप इन्कार कर देते थे। आपके निजी ग्रंथागार में बहुमूल्य धार्मिक एवं ऐतिहासिक ग्रंथों का संग्रह था। आपके पिता फूसराजजी पर राष्ट्रीय आन्दोलन का रंग चढ़ा था। उन्होंने विदेशी माल का बहिष्कार किया एवं खद्दर पहननी शुरु की।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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