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________________ 314 जैन-विभूतियाँ 76. सर वशनजी त्रीकमजी (1865-1925) जन्म : बम्बई, 1865 पिताश्री : त्रीकमजी मूलजी लोडाया माताश्री : लाख बाई पद/उपाधि : राय साहब (1898), सर (1911) दिवंगति : 1925 समस्त जैन समाज में 'सर' व 'नाईट' (Knight) की पदवियों से सम्मानित होने वाले प्रथम ओसवाल श्रेष्ठि वशन जी ही थे। सुथरी के दशा लोडाया गोत्रीय श्रेष्ठि त्रीकमजी मूलजी की पत्नी लाख बाई की कुक्षि से बम्बई में सन् 1865 में वशनजी का जन्म हुआ। माँ का सूतिका गृह में ही छठे दिन देहांत हो गया। वशन जी पितामह के धार्मिक संस्कारों में ही पले, बड़े हुए। सन् 1867 में पितामह ने केसरिया जी तीर्थ के लिए संघ समायोजन किया। सन् 1873 में पिता की एवं सन् 1875 में पितामह की मृत्यु हो जाने से परिवार का सारा भार वशनजी के बाल कंधों पर आ पड़ा। आपने हजारों रुपये खर्च कर जिनालय बनवाए, पाठशालाएँ खोली एवं धर्मशालाओं का निर्माण कराया। भयंकर दुष्काल के समय आपने सुथरी एवं अन्य अनेक जगहों पर दानशालाएँ खोली एवं त्रस्त जनता की सेवा की। इन लोकोपयोगी कार्यों के लिए सन् 1895 में सरकार ने उन्हें जे.पी. की पदवी दी। सन् 1898 में वे राय साहब की उपाधि से सम्मानित किये गये। सन् 1908 में सरकार ने उन्हें आनरेरी मजिस्ट्रेट नियुक्त किया। आपने रायल इन्स्टीट्यूट ऑफ साइन्स को सवा दो लाख रुपये प्रदान किये। सन् 1911 में सरकार ने आपके सेवा कार्यों से प्रभावित होकर आपको 'सर' का सर्वोच्च सम्मान (Knighthood) प्रदान किया। वे अनेक सार्वजनिक लोकहितकारी संस्थाओं के संस्थापक और ट्रस्टी रहे। आपके अवदानों की सूची बहुत विस्तृत है। सन् 1925 में आपकी मृत्यु हुई।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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