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________________ जैन- विभूतियाँ 313 राय साहब ने बड़ी हसरत से भादियलपुर तीर्थ को पुनः स्थापित करने के लिए वहाँ की पहाड़ी खरीद ली थी परन्तु अपने जीवन में वे इस तीर्थ की स्थापना का स्वप्न साकार न कर सके । आपने सम्मेद शिखर पर एक विशाल मन्दिर का निर्माण करवाया जो 18 सालों में बनकर तैयार हुआ । सन् 1885 में सिद्धांचल तीर्थ पर से यात्री टेक्स उठवाकर सालाना रकम नियत कराने में आप सफल हुए । सन् 1891 में आपने सपत्नीक श्रावक के 12 व्रत ग्रहण किए । आप ब्रिटिश इंडियन एसोशियेसन, हिन्दू युनिवर्सिटी, इम्पीरियल लीग आदि प्रभावशाली संस्थाओं के सदस्य थे। बंगाल के सुप्रसिद्ध नेशनल चेम्बर ऑफ कॉमर्स के प्रथम सभापति होने का श्रेय आप ही को प्राप्त हुआ। सम्मेद शिखर पहाड़ी पर जब सरकार ने निजी व सरकारी बंगले बनाने सम्बंधी बिल पास कर दिया तो आपने अथक प्रयास कर उसे रद्द करवाया। विभिन्न देशी नरेशों की ओर से आपको अनेक सम्मान बख्शे गए। अलवर नरेश ने आपको हाथी, गांव एवं पालकी से सम्मानित किया । हाड़ोती नरेश ने पांव में सोना इनायत किया। जैन श्वेताम्बर समाज में आपकी बड़ी प्रतिष्ठा थी । तीर्थराज सम्मेद शिखर एवं पालीताणा के क्षेत्रीय विवादों को बड़ी कुशलता से आपने सुलझाया। मुम्बई में सन् 1903 में हुई द्वितीय श्वेताम्बर जैन कान्फ्रेंस के आप सभापति चुने गए। सन् 1917 में आपका देहावसान हुआ | आपके सुपुत्र रायकुमारसिंह और राजकुमारसिंह ने आपकी कीर्ति को अक्षुण्ण रखा। प्रतिवर्ष कोलकाता का समस्त जैन समाज कार्तिक महोत्सव के अवसर पर बड़ा बाजार से दर्शनीय जलसा बनाकर इस भव्य मन्दिर की अभ्यर्थना करने जाता है ।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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