________________
312
जैन- विभूतियाँ
-
श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर जिनालय में आकर एक भूमि गृह को खुलवाया और अन्दर ले गये । वहाँ पर श्री शीतलनाथ भगवान की सर्वांग सुन्दर दिव्य प्रतिमा दृष्टिगोचर हुई, जिसके सामने दीपक जल रहा था। बद्रीदासजी प्रभु प्रतिमा के दर्शन कर प्रफुल्लित हो गये और हर्ष पूर्वक प्रतिमा को उठाकर बाहर ले आये । इस मनोभिलाषित कार्यसिद्धि के लिए उन महापुरुष का आभार मानने के लिए प्रस्तुत हुए तो वे महापुरुष अदृश्य हो गये। श्री शीतलनाथ भगवान की इस दिव्य मूर्ति की सन् 1868 में माघ सुदी 5 को शुभ मुहूर्त में श्री पूज्यजी श्री जिनचन्द्र सूरिजी के कर कमलों द्वारा कोलकात्ता दादा बाड़ी में नव निर्मित जैन मन्दिर में प्रतिष्ठा करवाई। इस चमत्कारिक प्रतिमा के आगे अखण्ड दीपक से काजल न उतरकर आज भी कैसर उतरती है। मन्दिर एवं सभा मण्डप में मीनाकारी व कांच का काम .अद्भुत कलापूर्ण है। सभा मण्डप में पंचकल्याणक तथा जयपुरी कलम के विशाल चित्र सामने के कक्षों में चतुर्दिश सुशोभित हैं। इनमें 16 महासतियों के, श्रीपाल जी दादा साहब के जीवनगत चित्र, कार्तिक महोत्सव की ऐतिहासिक सवारी आदि के विशाल नयाभिराम चित्र हैं, जो कला की अमूल्य निधि हैं। इनके निर्माण में करीब 15-20 वर्ष चित्रकारों को लगे थे ।
जिनालय के सम्मुख मन्दिर निर्माता रायबद्रीदास जी की सुन्दर प्रतिमा वन्दन करती हुई विराजमान हैं । मन्दिर के आगे नीचे हाथी निर्मित हैं। दाहिनी ओर रायसाहब के गुरु श्री जिनकल्याण सूरि जी, पिता श्री कालकादासजी, पितामह श्री विजयसिंह जी व उनके लघु भ्राता श्री बुधसिंह जी की मूर्तियाँ एक कक्ष में हैं ।
ब्रिटेन के बादशाह पंचमज़ार्ज के शासन के रजत जयंती समारोह के अवसर पर इस भव्य मंदिर का चित्रांकित डाक टिकट जारी किया गया था। विश्व के अनेक सरकारी एवं गैर सरकारी सोवेनियरों में इस मन्दिर की आकर्षक छवि प्रदर्शित की जाती है। पान - अमरीकन वर्ल्ड एअरवेज दो बार अपने कलेण्डरों को इस नयनाभिराम छवि से मंडित कर चुकी है। इस मन्दिर में अनेक रत्न जंटित मूर्तियों का अमूल्य संग्रह है। मन्दिर से संलग्न म्यूजियम तमिल एवं तेलगू के ताड़पत्रीय ग्रंथ एवं नागरी लिपि के प्राचीन ग्रंथ भरे पड़े हैं जिनकी शोध अपेक्षित है।