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________________ 12 जैन-विभूतियाँ ज्यों-ज्यों संस्कार क्षय हुए, वे आत्म समाधि में लीन रहने लगे। संवत 1947 में एक पत्र में लिखे श्रीमद् के उद्गार आत्म-साधकों के मार्गदर्शन में सहायक हो सकते हैं : "परिपूर्ण स्वरूप ज्ञान उत्पन्न होने के बाद इस समाधि से निकलकर लोकालोक के दर्शन को जाना कैसे बनेगा? अब हमें मुक्ति न चाहिए, न जैनों का केवल ज्ञान। अब हम अपनी दशा किसी प्रकार नहीं कह सकेंगे, निरुपायता है।" संवत् 1957 में 33 वर्ष की अल्पायु में राजकोट में श्रीमद् राजचन्द्र ने शरीर त्याग कर महाप्रयाण किया। उनकी स्मृति में रत्नकूट, हम्पी (मैसूर) में बनाया गया 'श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम' जैन जगत एवं समस्त अध्यात्म प्रेमियों के लिए उपयुक्त साधना स्थली है।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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