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________________ 310 जैन-विभूतियाँ 75. रा. ब. बद्रीदास मुकीम (1832-1917) जन्म : लखनऊ, 1832 पिताश्री : लाला कालकादास माताश्री : खुशाल कुँवर उपाधि : राय बाहदुर, 1877 दिवंगति : कलकत्ता, 1917 ___ श्रीमाल-सिंघड़ (सिंहधण) गोत्रीय राय बहादुर बद्रीदास कोलकाता के समस्त जैन समाज में बड़े आदर और सम्मान की दृष्टि से देखे जाते थे। सिंहधण गोत्र की उत्पत्ति खरतर गच्छीय आ. जिनचन्द्र सूरि (अकबर प्रतिबोधक) द्वारा मानी जाती है। इनके परदादा देवीसिंह जी दिल्ली में रहते थे। दादा विजयसिंह जी अवध के नवाब के आग्रह पर लखनऊ आकर बसे। इनके पिता लाला कालकादास जी लखनऊ के नवाब के राज जौहरी थे। बद्रीदास जी का जन्म सन् 1832 में हुआ। वे युवा होकर व्यवसाय देखने लगे। जल्द ही लखनऊ के नवाबजादों से उनकी अच्छी जान पहचान हो गई। सन् 1852 में अंग्रेज सरकार लखनऊ के नवाब वाजिदअली साह को गिरफ्तार कर कोलकाता लाई तभी आप उसके साथ कोलकाता आए। मौके का फायदा उठाकर आपने जवाहरात का व्यवसाय प्रारंभ कर दिया। आपके पास बेशकीमती जवाहरातों का संग्रह था। ब्रिटेन के बादशाह एडवर्ड सप्तम जब भारत पधारे तो यह बेशकीमती संग्रह देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए। आपके संग्रह में एक ऐतिहासिक रत्न "छत्रपति माणिक' भी था जो 1 इंच लम्बा और पौन इंच चौड़ा तथा 24 रत्तीवजन का था। कहते हैं कभी यह माणिक भारत सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के मुकुट की शोभा था-फिर किसी दक्षिण के तानाशाह के खजाने में रहा, वहाँ से बादशाह औरंगजेब और फिर जगतसेठ घराने के हाथ में आया जिनसे राय बद्रीदास जी के पास आया। सन् 1963 में एक अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में आपने वह संग्रह प्रदर्शित किया एवं मुक्तकंठ से विदेशी जौहरियों की प्रशंसा प्राप्त की।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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