________________
308
जैन-विभूतियाँ 74. सेठ खेतसी खींवसी दुल्ला (1854-1921)
जन्म : सुथरी (कच्छ), 1854 पिताश्री : खींवसी करमण दुल्ला दिवंगति : लिंबड़ी, 1921
प्रेम से 'दुल्ला राजा' नाम से जनप्रिय सेठ खेतसी का जन्म सन् 1854 में जैन तीर्थ सुथरी में कच्छी दसा ओसवाल मूल लोडाया गोत्रीय धुल्ला शाखा के खींवसी करमण के घर माता गंगाबाई की कुक्षि से हुआ। सरनेम 'धुल्ला' या 'दुल्ला' दिल के दिलावर या दौलत अधिक होने से व्युत्पन्न लगता है। ये अपने को उदयपुर के सूर्यवंशी राणा वंश के राजपूतों से निस्सृत मानते हैं, जैनधर्म अंगीकार कर लेने से ओसवाल कुल में शामिल किए गये। खींवसी जी के चारों पुत्र सुथरी से बम्बई आ बसे। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद वे माधवजी धरमसी की पेढ़ी पर रुई का काम सीखने लगे। जल्दी ही पारंगत होकर उन्होंने अपना स्वतंत्र रुई व्यवसाय स्थापित किया और सफल हुए। ___ खेतसी का प्रथम विवाह सं. 1932 में हुआ। वधू की अकाल मृत्योपरांत द्वितीय विवाह सं. 1937 में वीरबाई से हुआ। वीरबाई के सहवास से गृह स्वर्ग तुल्य हो गया। सं. 1944 में पुत्र हीरजी का जन्म हुआ। उस वर्ष अकल्पनीय मुनाफा हुआ। हीरजी खेतसी कम्पनी स्थापित की। जल्द ही उनकी गिनती कोट्याधीशों में होने लगी। खेतसी रुई के तलस्पर्शी ज्ञान के कारण सम्पूर्ण बाजार में 'मास्टर ग्रेजुएट' नाम से जाने जाते थे। अनेक प्रतिष्ठानों, बैंकों एवं एक्सचेंजों ने उन्हें अपना डाइरेक्टर मनोनीत किया। खेतसी ने भी अनेक शहरों में शाखाएँ खोलीं। प्रमुख उद्योगपतियों एवं राजा-महाराजाओं से उनके घनिष्ठ संबंध थे।
समाज का हर क्षेत्र उनके दान से लाभान्वित हुआ। सं. 1956 के अकाल में उन्होंने त्रस्त जनता की बड़ी सहायता की एवं द्वितीय जगडू शाह कहे जाने लगे। सं. 1972 तक अकालों की श्रृंखला निरन्तर