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जैन-विभूतियाँ
307 कोट्याधीश होकर आप अपने धर्म, कौम और जाति को नहीं भूले। समृद्धि के साथ ही आपकी दान भावना विस्तार पाती गई। सन 1864 में आपने बम्बई यूनिवर्सिटी में सवा छ: लाख रुपयों के अभूतपूर्व दान से "प्रेमचन्द रायचन्द फेलोशिप'' की स्थापना की। उसी समय कलकत्ता यूनिवर्सिटी को भी सवा चार लाख रुपये प्रदान कर वहाँ 'प्रेमचन्द रायचन्द फेलोशिप'' स्थापित की। ये दोनों फेलोशिप आज करीब 120 वर्षों से निरन्तर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शोधकर्ताओं के लिए आर्थिक सम्बल बनी हुई है। इसी तरह आपने अन्य अनेक स्थानों पर कन्या शालाओं, कॉलेजों व अनाथालयों को लाखों रुपए उदारता पूर्वक प्रदान किए। धार्मिक तीर्थों एवं धर्मशालाओं के निर्माण एवं पुनरूद्धार के लिए भी आपने लाखों रूपयों का अवदान दिया। आपकी मातुश्री के नाम पर बना बम्बई यूनिवर्सिटी का सर्वोच्च 'राज बाई टावर' आपका कीर्ति स्तम्भ कहा जा सकता है।
दान के बारे में आप कहा करते थे- "जिनकी प्रेरणा से मैं दान देने को प्रेरित होता हूँ वे ही मेरे सच्चे मित्र हैं। जो मैंने दिया वही मेरा था। जो मेरे पास है उसका मालिक मैं नहीं।'' इस तरह गाँधीजी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत को आकार देने वाले वे सच्चे दानवीर थे। ऐसे उदार चेता कुशल व्यापारी का देहांत सन् 1905 की भाद्र शुक्ला 12 को हुआ। गुजरात के ओसवाल श्रेष्ठियों में आपकी यशगाथा अद्वितीय है।