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जैन - विभूतियाँ
73. सेठ प्रेमचन्द रायचन्द (1831-1905)
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जन्म
पिताश्री
दिवंगति
सूरत, 1831
: रायचन्द दीपचन्द
: मुंबई, 1905
सूरत के दसा ओसवाल ( बनिया) श्रेष्ठि श्री प्रेमचन्द भाई का जन्म सन् 1831 में अत्यंत गरीब परिवार में हुआ। वे अपने अध्यवसाय से उन्नति करं सम्पूर्ण देश में रूई की व्यापारिक दुनिया के 'बादशाह' नाम से विख्यात हुए। बाजार में भावों पर आपका नियंत्रण इतना जबरदस्त था कि लोग कहते आज का भाव तो यह है, कल की बात प्रेमचन्द भाई जाने। यह स्थिति पूरे बम्बई इलाके में चालीस वर्ष तक रही ।
आपके पिता सेठ रायचन्द दीपचन्द सूरत में दलाली करते थे। प्रेमचन्द भाई अल्पवय में मुंबई आए । उन्होंने रूई व अफीम का व्यवसाय शुरु किया । आपने सन् 1863 में मुंबई रीक्लेमेसन कम्पनी का कोलाबा से बालकेश्वर तक समुद्र पूरने का ठेका लिया। इससे उन्होंने खूब लाभ कमाया। जब अमरीका में गृह युद्ध छिड़ा तो भारत में रूई के बाजार में भयंकर तेजी आई। प्रेमचन्द भाई ने इसका भरपूर लाभ उठाया। शेयरों के भाव अनाप-शनाप बढ़ गए। नई कम्पनियाँ उनकी देखरेख में बनने लगी। आपकी जिस कम्पनी के शेयर लोगों ने पाँच हजार में खरीदे थे उसके भाव बढ़कर छत्तीस हजार हो गए। इस तरह प्रेमचन्द भाई ने अपार सम्पत्ति अर्जित की। अमरीका की सिविल वार जल्द ही खत्म हो गई। जिससे उन्हें घाटा भी सहना पड़ा ।