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________________ 304 जैन-विभूतियाँ प्रकाशित 'स्वरालोक' के छंदों की मृदुल लय और गति, सभी की स्मृति में बस गई। डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार ''ये रचनाएँ एक संगीत हैं, जो शब्दों की परिधि के पार हृदय में गूंजता रहता है।'' सन् 1968 में प्रकाशित "श्रम वंदन'' काव्य पर सम्मति देते हुए आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उस शक्ति पुंज के अधिकाधिक विकसित होने की कामना व्यक्त की। वस्तुत: अधिकांश कृतियाँ सन् 1970 के बाद ही लिखी गई। यह समय उनके संताप-सृजन का था। एकमात्र युवा पुत्र का निधन, पत्नी का दु:खद वियोग, दामाद की मृत्यु, कण्ठ-व्याधि के कारण वाणी का विलोप, शारीरिक विकलता, विवशता एवं आंशिक पक्षाघात जैसी दुर्दमनीय विभीषिकाओं से वे त्रस्त रहे। इन यातनाओं से भी यह महामानव घबराया नहीं। "जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये" - उनके जीवन का मूल मंत्र था। शब्द का सहारा लेकर उन्होंने अपनी एकान्तता को महागाथा के रूप में परिवर्तित कर दिया। तभी तो सन् 1983 से 2000 के 18वर्षों की अवधि में उन्होंने 30 महाकाव्य, 22 स्फुट काव्य एवं एक शोध-प्रबंध, कुल 53 कृतियाँ हिन्दी संसार को भेंट की। कविता को उन्होंने जीवन का एक अनिवार्य कर्म माना। उनकी काव्यधारा में सम्पूर्ण मानवता के दर्शन होते हैं। वे किसी विचारधारा विशेष से सम्बद्ध नहीं हुए। उन्होंने हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिक्ख, ईसाई धर्म-चरित्र नायकों के चरित्र को अपना रचना-विषय बनाया। जहाँ उनकी महाकाव्य श्रृंखला में मीराँ और कबीर भक्त मनीषी हैं, वहाँ कपिल एवं धन्वन्तरि जैसे योगी भी हैं। उन्होंने अपने नौ गेय-गीतों के कैसेट 'अनुगूंज' नाम से प्रकाशित किये । ये गीत विलक्षण लयबद्धता एवं आत्मा को अभिसिंचित करने वाले माधुर्य से ओत-प्रोत हैं। इतिहास को काव्य और लय में सम्प्रेषित करने वाले इस महामानव को राजस्थान साहित्य अकादमी ने 25 मार्च, 2000 के दिन विशिष्ट साहित्यकार सम्मान से अलंकृत किया। पाचांल शोध संस्थान, कानपुर ने उन्हें 'साहित्य वारिधि' के विरुद से सम्मानित किया। जन्मभूमि बीकानेर एवं कर्मभूमि कोलकाता ने उनका समुचित अभिनन्दन किया।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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