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जैन-विभूतियाँ
305 वे विश्व मानव थे। उन्होंने अनेक देशों की यात्राएँ की एवं उनकी साहित्यिक, सांस्कृतिक धरोहर का जायजा लिया। जापान, जर्मनी, इंग्लैण्ड, फ्रांस, स्वीट्जरलैण्ड, हांककांग के साहित्यकारों पर उन्होंने अपने सरल व्यक्तित्व की छाप छोड़ी।
जैन साहित्य में नवोन्मेष करने वाले मौलिक ग्रंथाकारों को सम्मानित करने के लिए एवं अपने स्वर्गीय पुत्र की स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिए उन्होंने 'श्री प्रदीप कुमार रामपुरिया स्मृति पुरस्कार' की घोषणा की, जिसमें हर वर्ष इक्यावन हजार रुपयों की राशि भेंट स्वरूप दी जाती है। इसी क्रम में बीकानेर नगर के साहित्यकारों के सम्मानार्थ उन्होंने ग्यारह हजार रुपयों के 'शब्दर्षि सम्मान' की घोषणा की। वे अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों एवं खेल-संस्थानों के सक्रिय सदस्य थे।
9 जनवरी, 2003 की रात उन्होंने अपनी देह यात्रा सम्पन्न की।