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________________ जैन-विभूतियाँ 72. श्री माणकचन्द रामपुरिया (1934-2003) जन्म : बीकानेर, 1934 पिताश्री : सौभागमल रामपुरिया शिक्षा : साहित्यरत्न, आयुर्वेद रत्न, सर्जन 303 साहित्याचार्य, महामहोपाध्याय (1986) : 30 महाकाव्य, 3 खण्ड काव्य, 33 काव्य संकलन दिवंगति : 2003 20वीं शदी के जैन समाज को अपनी काव्य धारा से आप्लावित करने वाले महाकवि माणकचन्दजी रामपुरिया ओसवाल समाज के उज्ज्वल नक्षत्र थे। उनमें कबीर की सी मस्ती और अल्हड़ता, मीरां जैसी तन्मयता, तुलसी-सी साधना और सूर-सी अलौकिक दृष्टि थी । वे कविता में जीते रहे, महाकाव्य लिखते-लिखते उनका जीवन ही एक महाकाव्य बन गया । उनका जन्म बीकानेर के ओसवाल श्रेष्ठ श्री सौभागमलजी रामपुरिया के घर सन् 1934 में हुआ। उनकी शिक्षा बीकानेर में ही हुई । हिन्दी साहित्य में उनकी रुचि बचपन से थी । हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की साहित्य रत्न, आयुर्वेद रत्न एवं साहित्याचार्य परीक्षा सफलताओं तक ही उनका अध्ययन सीमित नहीं रहा, सम्मेलन की सर्वोच्च उपाधि " महामहोपाध्याय ' के लिए 'संत कबीर की काव्य साधना और सिद्धांत' विषय पर शोध-प्रबंध लिखा एवं सन् 1986 में सम्मेलन द्वारा उन्हें यह उपाधि प्रदान की गई। काव्य सृजन उनकी रगों में था । साहित्य - जगत में प्रशंसित होकर उनका काव्य-संसार क्रमश: प्रसार पाता गया । फलत: अपने 68 वर्षीय जीवन काल में उन्होंने 69 कृतियों का सृजन किया, जिनमें 30 महाकाव्य. 3 खण्ड-काव्य एवं 33 अन्य काव्य संकलन हैं। सन् 1956 में प्रकाशित 'मधुज्वाला' का प्राक्कथन लिखते समय हिन्दी साहित्य जगत के पुरोधा श्री जयशंकर प्रसाद ने कृति को 'दीप स्तम्भ' की संज्ञा दी थी। सन् 1965 में
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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